नवरात्रि के पहले दिन आज होती है मां शैलपुत्री की पूजा,पढ़े आरती और मंत्र

हिंदू धर्म में हर त्यौहार का अपना लग महत्त्व होता है। आज से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और हिंदू धर्म में नवरात्रि का भी बेहद खास महत्व है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना की जाती है। इस साल एक तिथि का क्षय है जिससे नवरात्रि 9 के बजाय 8 दिनों का ही है। चैत्र नवरात्रि का पहला दिन यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली प्रतिपदा तिथि 30 मार्च 2025 को है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित होता है। इसके साथ ही आज ही घटस्थापना भी की जाएगी। यही वजह है कि, नवरात्रि के पहले दिन को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से घटस्थापना का शुभ मुहूर्त, माता शैलपुत्री की पूजा विधि समेत अन्य जानकारियां देंगे।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त:
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 30 मार्च को सुबह 6:13 बजे से 10:21 बजे तक रहेगा। इसके अलावा, अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:01 से 12:50 तक रहेगा। इस दौरान भक्त अपने घरों में कलश स्थापित कर जौ बोते हैं और अखंड ज्योति जलाते हैं।
मां शैलपुत्री पूजा विधि:
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से पहले शुभ मुहूर्त में घट स्थापना कर लें. उसके बाद विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करने के बाद अखंड ज्योत जलाएं. अब षोडोपचार विधि से मां शैलुपत्री की पूजा करें. इस दौरान मां शैलपुत्री को कुमकुम, सफेद चंदन, सिंदूर, पान, हल्दी, अक्षत, सुपारी, लौंग, नारियल और 16 श्रृंगार का सामान अर्पित करें. मां शैलपुत्री को सफेद रंग के फूल, सफेद मिठाई का भोग लगाएं. उसके बाद मां शैलपुत्री के बीज मंत्रों का जाप करें और अंत में आरती करें. शाम को भी मां शैलपुत्री की आरती करें और लोगों को प्रसाद दें।
मां शैलपुत्री पूजा मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
उपासना मंत्र:
वन्देवांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
माता शैलपुत्री देवी कवच:
ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।
हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।
हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥
मां शैलपुत्री की आरती:
शैलपुत्रीमां बैल असवार.
करें देवता जय जयकार.
शिव शंकरकीप्रिय भवानी.
तेरीमहिमा किसी ने ना जानी.
पार्वतीतूउमा कहलावे.
जो तुझेसिमरे सो सुख पावे.
ऋद्धि-सिद्धिपरवान करे तू.
दया करे धनवानकरे तू.
सोमवारकोशिव संग प्यारी.
आरतीतेरी जिसने उतारी.
उसकीसगरी आस पुजा दो.
सगरेदुख तकलीफ मिला दो.
घी का सुंदरदीप जला के.
गोलागरी का भोग लगा के.
श्रद्धाभाव से मंत्र गाएं.
प्रेमसहित फिर शीश झुकाएं.
जय गिरिराजकिशोरी अंबे.
शिव मुख चंद्रचकोरी अंबे.
मनोकामनापूर्ण कर दो.
भक्तसदा सुख संपत्ति भर दो.
माता शैलपुत्री की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया. देवी सती उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें बिना निमंत्रण के वहां जाने से मना किया. लेकिन सती माता नहीं मानी और अपनी हठ पर अड़ी रहीं. इसके बाद महादेव को विवश होकर उन्हें भेजना पड़ा।सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां पहुंची तो वहां किसी ने भी उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार नहीं किया. उनका और भगवान शिव का उपहास उड़ाया. इस व्यवहार से देवी सती बहुत आहत हुईं. वो अपने पति का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाईं और क्रोधवश वहां स्थित यज्ञ कुंड में बैठ गईं. जब शिव को ये बात पता चली तो वे दुख और क्रोध की ज्वाला में जलते हुए वहां पहुंचे और यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. कहा जाता है कि इसके बाद देवी सती ने ही हिमालय पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया. हिमालय की पुत्री होने के नाते देवी पार्वती को शैलपुत्री के नाम से जाना गया।