एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं श्याम रजक,जल्द हीं ज्वाइन करेंगे जदयू!
बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी हलचल बढ़ने के साथ ही दलित वोटों को लेकर राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. दलित चेहरों का आरजेडी के साथ मोहभंग होता जा रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी में घर वापसी करने वाले दिग्गज नेता श्याम रजक पांच साल भी पार्टी में नहीं रह सके. श्याम रजक ने गुरुवार को आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. माना जा रहा है कि वो जेडीयू का दामन फिर थाम सकते हैं।श्याम रजक ने अपने इस्तीफे में सीधे आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद को टारगेट पर लिया है. उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा, ‘मैं शतरंज का शौकीन नहीं था, इसीलिए धोखा खा गया. आप मोहरे चलते रहे थे, मैं रिश्तेदारी निभा रहा था.’ श्याम रजक का यह इस्तीफा आरजेडी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. उन्होंने आरजेडी ऐसे समय छोड़ी है, जब दलित आरक्षण का मुद्दा गर्म है. श्याम रजक बिहार में दलित चेहरा माने जाते थे और दलितों के मुद्दे पर मुखर रहने वाले नेताओं में उन्हें गिना जाता है. ऐसे में लालू प्रसाद यादव पर धोखा देने का आरोप लगाकर श्याम रजक ने आरजेडी को दलित विरोधी कठघरे में खड़ा करने का दांव चला है।बिहार की दलित राजनीति में फिलहाल चार बड़े चेहरे हैं, जिसमें चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, अशोक चौधरी और श्याम रजक शामिल हैं. पासवान, मांझी और चौधरी पहले से ही एनडीए खेमे में है।
ऐसे में अगर श्याम रजक भी जेडीयू का दामन थामते हैं तो प्रदेश के चारों दलित नेता एनडीए के मंच पर नजर आएंगे. आरजेडी के लिए दलित समुदाय के वोटों को सहजने वाला कोई कद्दावर चेहरा नहीं बचा. इस तरह आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्ष को दलित वोटों को साधने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी।दलितों में उलझी चिराग की राजनीति, हर मुद्दे पर मुखर होने की ये है की आरजेडी में एक समय श्याम रजक और राम कृपाल यादव की तूती बोलती थी. लालू प्रसाद यादव की सियासत में राम-श्याम की जोड़ी हिट रही. राम (रामकृपाल यादव) और श्याम (श्याम रजक) का दबदबा हुआ करता था, लेकिन अब दोनों आरजेडी को छोड़ चुके हैं. हालांकि, लालू ने एक समय बिहार में अपना जातीय समीकरण तैयार किया था, जिसमें दलितों का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल रहा. लालू प्रसाद यादव के साथ दलित जाति का कोई बहुत बड़ा नेता भले न रहा हो, लेकिन लालू ने अपने करिश्मे से दलितों के एक बड़े वोट बैंक को जोड़े रखा. इस में श्याम रजक जैसे नेताओं की भूमिका अहम रही।