नीतीश से दूर हो गए मुसलमान,वक्फ के जरिए मजबूत हुए लालू यादव!

बिहार में सात महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से ही सियासी सरगर्मी बढ़ गई है. रमजान का महीना होने की वजह से इन दिनों मुसमलानों को साधने की लगातार कवायद की जा रही है तो मुस्लिम संगठनों ने भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. रोजा इफ्तार के बहाने सियासी दल मुस्लिमों के बीच अपनी पैठ जमाना चाहते हैं तो मुस्लिम संगठन वक्फ संसोधन बिल का विरोध करके राजनीतिक दलों की थाह ले रहे हैं. इस तरह मुस्लिम वोटों को पाने की रेस में लालू प्रसाद यादव ने ऐसी दौड़ लगाई कि नीतीश कुमार को काफी पीछे छोड़ दिया है, लेकिन पीके अभी भी राह में रोड़ा बने हुए हैं?वक्फ संशोधन बिल को लेकर मुस्लिम समुदाय नाराज हैं, जिसे लेकर सड़क से लेकर सदन तक हंगामा मचा हुआ है. मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और उन्हें कई राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है.

एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू और एलजेपी पर दवाब बनाने के लिए मुस्लिम संगठनों ने उनकी रोजा इफ्तार पार्टी का बॉयकाट और लालू यादव की इफ्तार पार्टी में शिरकत कर अपने सियासी मंसूबों से वाकिफ करा दिया है. ऐसे में लालू यादव ने भी वक्फ बिल के विरोध में होने वाले प्रदर्शन में शिरकत कर साफ कर दिया है कि मुसलमानों से जुड़े हुए मुद्दों पर खुलकर खड़े हैं. इस तरह मुस्लिम वोटों के शह-मात के खेल में लालू यादव ने क्या नीतीश कुमार को अलग-थलग कर दिया है?बिहार में करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है. प्रदेश की कुल 243 विधानसभा सीटें में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं. इन सीट पर मुस्लिम वोटर 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. इस तरह मुस्लिम समुदाय बिहार में सियासी रूप से किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते है।मुस्लिम वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए लालू प्रसाद यादव से लेकर नीतीश कुमार और चिराग पासवान ही नहीं असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर तक मुस्लिम वोटों को अपने साथ जोड़ने की स्ट्रैटेजी पर काम कर रहे हैं. मुस्लिम वोटों को साधने के लिए रोजा इफ्तार पार्टी का आयोजन का सहारा ले रहे हैं ताकि 2025 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सकें. मुस्लिम वोटों की रेस में लालू यादव ने तमाम दूसरे नेताओं को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी और प्रशांत किशोर जरूर थोड़ी चिंता पैदा कर रहे हैं।