राहुल गांधी को कांग्रेस के तरफ से PM कैंडिडेट बताए जाने के बाद से विपक्षी नेताओं में बढ़ी दूरियां,सीएम नीतीश भी हैं परेशान!

 राहुल गांधी को कांग्रेस के तरफ से PM कैंडिडेट बताए जाने के बाद से विपक्षी नेताओं में बढ़ी दूरियां,सीएम नीतीश भी हैं परेशान!
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कांग्रेस नेता शशि थरूर के बयान ने सबको चौंका दिया है। विपक्षी गठबंधन के पीएम फेस के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी का नाम उछाल कर थरूर ने उन सबके मंसूबों पर पानी फेर दिया है, जो बिल्ली के भाग से छींका टूटने का इंतजार कर रहे थे। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर और अरविंद केजरीवाल के दिल पर थरूर के बयान से क्या बीत रही होगी, यह तो वे ही बेहतर बता सकते हैं, पर उन्हें तकलीफ जरूर हुई होगी। इसलिए कि पीएम बनने का सपना लेकर सबसे पहले ममता बनर्जी ही निकली थीं। बाद में केसीआर ने भी कोशिश की थी। हालांकि दोनों कहीं से उत्साहजनक रेस्पांस नहीं मिल पाने के कारण बाद में खामोश हो गए थे। अरविंद केजरीवाल ने भले ही पीएम बनने की अपनी मंशा कभी जाहिर नहीं की, लेकिन दो सूबों में सरकार चला रही उनकी आम आदमी पार्टी को चमत्कार की उम्मीद तो रही ही होगी। नीतीश कुमार को तो थरूर के बयान ने सबसे अधिक झटका लगा होगा।कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर बड़ा खुलासा किया है। थरूर ने कहा है कि अगर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करता है तो कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे या फिर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में नामित कर सकती है। कांग्रेस काफी हद तक परिवारवादी पार्टी है। शशि थरूर के पहले कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता कमलनाथ ने भी कहा था कि कांग्रेस की ओर से निर्विवाद रूप से पीएम फेस राहुल गांधी ही होंगे। यानी अगर आखिरी वक्त तक इंडिया अलायंस बरकरार रहता है तो राहुल गांधी ही पीएम का चेहरा होंगे, अब इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।बिहार के सीएम नीतीश कुमार एनडीए छोड़ते ही विपक्षी एकता की रट लगाने लगे थे। बिहार के महागठबंधन में शामिल आरजेडी और जेडीयू के नेता नीतीश को लगातार पीएम फेस बता रहे थे। इसके लिए पटना में कभी पोस्टर लगाए गए तो कभी लालकिले के तर्ज पर बने पंडाल में नीतीश को बिठाया गया। बिहार के विपक्षी नेताओं की इच्छा यही थी कि नीतीश कुमार ही पीएम पद का दावेदार बनें। उत्साह में नीतीश विपक्षी नेताओं के दरवाजे पर दस्तक देते रहे। हालांकि नीतीश ने खुद ही इस बात का खंडन कर दिया था कि वे पीएम पद की रेस में हैं। इसके बावजूद हाल तक आरजेडी के विधायक और लालू यादव परिवार के करीबी भाई बीरेंद्र जोर देकर कहते रहे हैं कि नीतीश पीएम पद के उपयुक्त और सशक्त दावेदार हैं।नीतीश कुमार का लंबा राजनीतिक करियर रहा है। वे परिस्थितियों को अपने अनुकूल ढालना जानते हैं। यही वजह है कि वर्ष 2005 से अब तक कभी सरकार बनाने लायक अपनी पार्टी के विधायकों की संख्या न रहने के बावजूद वे लगातार 18 साल से बिहार के सीएम बनते रहे हैं। नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए जो शुरुआती मेहनत की, उसका निजी तौर पर उन्हें लाभ नहीं मिला। उन्हें न विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाया गया और न उस तरह की जिम्मेवारी ही बाद में दी गई। उन्हें विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाने की चर्चा होती रही, लेकिन अब तो इस पर चर्चा ही नहीं होती। खैर, विपक्ष में रह कर भी नीतीश को इस बात का इंतजार रहेगा कि कहीं उनकी लाटरी न लग जाए।बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की काफी दुर्गति हुई। उनके विधायकों की संख्या 43 पर सिमट गई। सहयोगी पार्टी बीजेपी के सर्वाधिक विधायक थे।

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नीतीश नाराज होकर कोप भवन में चले गए। वे जानते थे कि सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी बीजेपी अकेले कुछ कर नहीं पाएगी। नतीजा यह हुआ कि बीजेपी के बड़े नेताओं को नीतीश के मानमनौवल के लिए आना पड़ा। आखिरकार विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के नेता नीतीश कुमार सीएम बन गए थे। नीतीश कुमार ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद कर सकते हैं।कांग्रेस आज नीतीश कुमार के गेंद से ही मैदान में बड़ा खिलाड़ी बनने की कोशिश कर रही है। जाति सर्वेक्षण के काम में नीतीश कुमार को मिली सफलता को कांग्रेस ने अपना हथियार बना लिया है। नीतीश ने सर्वेक्षण रिपोर्ट पर विधानसभा में चर्चा के बाद ही किसी तरह के नीतिगत फैसले की बात कही है। लेकिन कांग्रेस ने तो अब इसे विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के लिए अपना अस्त्र ही बना लिया है। राहुल गांधी तो नीतीश से एक कदम आगे बढ़ कर आबादी के हिसाब से आरक्षण तक की बात कहने लगे हैं। हास्यास्पद यह है कि जनता पार्टी के राज में जब बीपी मंडल आयोग की पिछड़ों पर रिपोर्ट आई तो बाद की कांग्रेस सरकार ने उसे कबाड़ में फेंक दिया। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों ने उसकी कोई सुध नहीं ली। मंडल आयोग ने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी। आश्चर्यजनक ढंग से उसी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अब आबादी के हिसाब से आरक्षण सीमा तय करने का वादा कर रहे हैं।

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