समय की कसौटी पर खरा उतरा है संविधान,चर्चा के दौरान बोली निर्मला सीतारमण

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संविधान पर चर्चा पर राज्यसभा में कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 50 से अधिक देश आजाद हो गए थे और उन्होंने अपना संविधान लिख लिया था, लेकिन कई लोगों ने अपने संविधान को बदल दिया, न केवल उनमें संशोधन किया है बल्कि वस्तुतः उनके संविधान की संपूर्ण विशेषता को बदल दिया है. लेकिन हमारा संविधान निश्चित रूप से समय की कसौटी पर खरा उतरा है और इसमें कई संशोधन हुए हैं.” उन्होंने आगे कहा कि हमारा संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है।राज्यसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “साल 1950 में सुप्रीम कोर्ट ने कम्युनिस्ट पत्रिका “क्रॉस रोड्स” और आरएसएस की संगठनात्मक पत्रिका “ऑर्गनाइजर” के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन इसके जवाब में, (तत्कालीन) अंतरिम सरकार ने सोचा कि पहले संविधान संशोधन की आवश्यकता थी, इसे कांग्रेस द्वारा लाया गया था और यह अनिवार्य रूप से आजादी पर अंकुश लगाने के लिए था. इसलिए भारत, एक लोकतांत्रिक देश जो आज भी अभिव्यक्ति की आजादी पर गर्व करता है, ने पहली अंतरिम सरकार को संविधान संशोधन करते हुए देखा, जिसका मकसद भारतीयों की अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाना था और वह भी संविधान को अंगीकार के लिए जाने के महज एक साल के अंदर…”कांग्रेस पर हमला करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “मजरूह सुल्तानपुरी और बलराज साहनी दोनों को साल 1949 में जेल भेजा गया था.

1949 में मिल मजदूरों के लिए आयोजित एक बैठक में शामिल होते हुए मजरूह सुल्तानपुरी ने जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ लिखी गई एक कविता सुनाई और फिर उन्हें जेल जाना पड़ा. मजरूह ने इसके लिए माफी मांगने से इनकार कर दिया और उन्हें जेल जाना पड़ा.” उन्होंने आगे कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी को कम करने का कांग्रेस का रिकॉर्ड इन दो लोगों तक ही सीमित नहीं था. साल 1975 में माइकल एडवर्ड्स की लिखी गई राजनीतिक जीवनी “नेहरू” पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उन्होंने “किस्सा कुर्सी का” नामक एक फिल्म (1975) पर भी बैन लगा दिया, क्योंकि इसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे पर सवाल उठाए गए थे।