अपने हीं बड़े नेताओं ने कांग्रेस को कर दिया कमजोर?राहुल ने अब संभाला मोर्चा

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जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. तारीखों का ऐलान हो चुका है. तीन चरणों में वोटिंग होगी. 4 अक्टूबर को नतीजे घोषित होंगे. ये चुनाव बीजेपी, कांग्रेस, पीडीपी, एनसी के लिए फिर से सत्ता पर काबिज होने का मौका है. इस मौके को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी हाथ से नहीं जाने देना चाहते. चुनाव का ऐलान होने के बाद ही वह एक्टिव मोड में आ गए. लोगों का मूड जानने के लिए वह कश्मीर के दौरे पर हैं. राहुल का प्रयास घाटी में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने का है. पार्टी को उस स्थिति में पहुंचाने का है जहां वो 1980 से पहले हुआ करती थी. घाटी में तब कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था।जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के कमजोर होने की वजह उसके अपने ही नेता रहे. पार्टी में अलग-अलग दौर में गुटबाजी रही. एक खेमा दूसरे खेमा के चमकने से मुंह बना लेता था।

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होता ये था कि पार्टी टूट जाती और इसका असर विधानसभा चुनाव में होता. 27 अक्टूबर, 1947 के बाद से जम्मू कश्मीर में 19 सरकारें रहीं. इसमें से 11 सरकारों का हिस्सा कांग्रेस रही. राज्य में कांग्रेस का हाल वैसा ही हुआ है जैसे उत्तर प्रदेश में है. जैसे जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-एनसी के मजबूत होने से कांग्रेस कमजोर होती गई वैसे यूपी में सपा-बसपा के बढ़ते जनाधार से कांग्रेस का आधार कमजोर होते गया।जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के कमजोर होने की बड़ी वजहों में गुटबाजी रही. दशक दर दशक कांग्रेस का कोई ना कोई बड़ा नेता पार्टी से अलग होने का फैसला किया. जम्मू कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद सादिक का पार्टी के ही नेता सैयद मीर कासिम के साथ विवाद चलता रहता था।

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