ललन सिंह का होने वाला है बुरा हाल क्योंकि इधर से भी गए और उधर से भी,लालू यादव के राजनीतिक चाल पर भारी पड़ें सीएम नीतीश

लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीतिक चालों की तुलना करें तो अपने को छोटा भाई बताने वाले नीतीश हमेशा लालू पर भरी पड़े हैं। चाहे वह वर्ष 2005 में लालू परिवार के शासन का अंत हो या 2022 में नये सिरे से रखी गई जेडीयू-आरजेडी की दोस्ती की नींव। हर बार नीतीश ही विजेता रहे और राजनीति के धुरंधर लालू को मात खानी पड़ी।राजनीति में नीतीश कुमार का उदय ही लालू यादव के विरोध से हुआ। जनता दल से अलग होकर समता पार्टी और बाद में जेडीयू बना कर नीतीश ने लालू यादव के सामने सियासी मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया। नीतीश ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी की हालत इतनी पतली कर दी कि 10 साल तक पूरा परिवार राजनीतिक वनवास में रहा।

लालू ने लालच देकर 2015 में नीतीश को साथी तो बनाया, लेकिन 2017 आते-आते नीतीश ने लालू को पटखनी दे दी। राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले लालू प्रसाद कभी नीतीश की चाल को समझ नहीं पाए। तभी तो 2022 में उन्होंने नीतीश को साथ लाने की भूल कर दी। हालांकि इसे भल की बजाय लालू की चालबाजी कहना ज्यादा उचित होगा। लालू ने तात्कालिक लाभ के तौर पर अपने बेटों को मंत्री बनवा दिया और नीतीश को पीएम बनने का सब्जबाग दिखा कर हाशिये पर लाने की चाल चली। पर, लालू यहां भी मात खा गए।लालू अपने बेटे तेजस्वी को सीएम बनाना चाहते हैं, यह बात अब छिपी नहीं रही। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लालू ने नीतीश को नेस्तनाबूद करने की पुख्ता प्लानिंग की थी। जेडीय के अध्यक्ष रहते ललन सिंह को उन्होंने पटाया। जेडीयू को तोड़ने का जिम्मा ललन सिंह ने उठाया। उनकी पहली कोशिश तो यही थी कि जेडीयू का विलय आरजेडी में करा लिया जाए। इसके लिए नीतीश राजी नहीं हुए तो जरूरत भर के विधायकों को तोड़ने की योजना बनी। ललन सिंह जेडीयू में टूट की योजना को अंतिम रूप देने ही वाले थे कि नीतीश के खुफिया तंत्र ने उन्हें अलर्ट कर दिया। नीतीश ने अपने बेहद करीबी ललन सिंह को अध्यक्ष पद छोड़ने को मजबूर कर दिया।सूचना तो यह भी है कि लालू ने अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को सीएम बनाने के लिए ललन सिंह को जेडीयू के 10-12 विधायकों को तोड़ने का टास्क दिया था। ललन को इसके एवज में राज्यसभा भेजने का लालू ने वादा किया था। चर्चा तो यह भी थी कि तेजस्वी के सीएम बनने पर ललन सिंह को डेप्युटी सीएम बनाने का ऑफर लालू ने दिया था। ललन सिंह की पहल पर जेडीयू के ऐसे 11 विधायकों ने पटना में बैठक भी की। प्लानिंग यह थी कि जेडीयू विधायकों का एक गुट तेजस्वी का समर्थन करे। दल बदल विरोधी कानून रास्ते में आड़े आया तो आरजेडी कोटे से विधानसबा अध्यक्ष बने अवध बिहारी चौधरी अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मामले को लटकाए रखेंगे। तब तक विधानसभा चुनाव आ जाएगा। पर, समय से पहले नीतीश के खुफियागीरों ने उन्हें इसकी जानकारी दे दी। नतीजतन ललन सिंह लालू का दिया टास्क पूरा नहीं कर पाए।