नीतीश अब कागज पर लिखा भाषण क्यों पढ़ने लगे हैं?ईमानदारी और लोगों के बीच विकास पुरुष की छवि

 नीतीश अब कागज पर लिखा भाषण क्यों पढ़ने लगे हैं?ईमानदारी और लोगों के बीच विकास पुरुष की छवि
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बिहार में एनडीए के कार्यकर्ता एक नारा खूब सुनाते हैं और वो है ‘2025 से तीस फिर नीतीश’, लेकिन नीतीश कुमार अगला पांच साल सीएम पद पर बने रह सकेंगे इसको लेकर संशय बना हुआ है. जाहिर है ऐसा इसलिए है क्योंकि नीतीश का रंग ढंग वो पुराना वाला नहीं है जिसके लिए नीतीश कुमार जाने जाते रहे हैं. समस्तीपुर की सभा में नीतीश भाषण दे रहे थे लेकिन नीतीश जो बोल रहे थे वो पेज पर लिखा हुआ था ऐसा साफ झलक रहा था.भाषण देने के दरमियान लगातार अपने पेट पर हाथ फेरते हुए नीतीश पन्नों में लिखित शब्दों को पढ़ रहे थे. इसलिए पुराने नीतीश को जानने वाले अचंभित जरूर हुए होंगे कि नीतीश अपना भाषण पन्नों में लिखा हुआ कब से पढ़ने लगे. शायद उम्र का तकाजा नीतीश कुमार को भाषण देने के लिए पन्नों पर आश्रित कर दिया है.लेकिन अभी भी नीतीश का चार्म बरकरार है इससे कौन इनकार कर सकता है.नीतीश बिहार की राजनीति के लिए अभी भी ब्रांड हैं इसलिए इस चुनाव में उन्हें दरकिनार करना संभव नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि उम्र के ढलान पर भी एनडीए नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा हर मंच से कर रही है.

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इंटरनल सर्वे इस बात की तस्दीक करता है कि नीतीश के पास खुद का 14 फीसदी वोट है जो नीतीश को इस उम्र के ढलान पर भी पसंद करता है. इसलिए नीतीश को रिप्लेस करना एनडीए में आसान रहने वाला नहीं है.नीतीश वैसे लिखा हुआ भाषण पढ़ने के आदी नहीं रहे हैं. वो हर मंच से स्थानीय समस्याओं को जिह्वा पर रख लोगों से कनेक्ट करने की क्षमता रखने वालों में गिने जाते रहे हैं. लेकिन उम्र के इस पड़ाव में उन्हें दूसरे तरीके से अपनी बातें रखनी पड़ रही हैं. जाहिर है नीतीश बदले-बदले दिख रहे हैं लेकिन नीतीश का वोटर अभी भी बदला नहीं है. इसका प्रमाण लोकसभा में साफ दिखाई पड़ा है.नीतीश का अंदाज और तरीका कई बार देश में लोगों को खूब भाया है. नीतीश की ईमानदारी और लोगों के बीच विकास पुरुष की छवि उन्हें पीएम मटेरियल भी बताती रही है, लेकिन नीतीश बिहार तक ही सीमित रह गए क्योंकि उनकी पार्टी का आधार बीजेपी और कांग्रेस जैसा कभी नहीं रहा.नीतीश जब साल 2013 में बीजेपी से अलग हुए थे तो वो इसलिए खूब चर्चा में थे क्योंकि उन्होंने नरेन्द्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी का विरोध किया था. नीतीश ने दिल्ली में कहा था कि भारत में रहने वालों को कभी तिलक भी लगाना होगा तो कभी टोपी भी पहननी होगी. नीतीश के ये शब्द उन्हें कम्युनल और सेक्युलर की लड़ाई में अलग ला खड़ा किया था.नीतीश कुमार को लेकर ये सवाल सिर्फ विपक्ष ही नहीं उठा रहा बल्कि उनकी पार्टी में भी ये सवाल उतना ही महत्वपूर्ण है. विपक्ष ये राग अलाप रहा है कि नीतीश अब उम्र के उस ढलान पर हैं कि बीजेपी उन्हें सीएम की कुर्सी सौंपने नहीं जा रही है. कई नेता एकनाथ शिंदे का उदाहरण देकर नीतीश को किनारा करने की बात कहते हैं, लेकिन उनका चार्म और वोट अभी भी बिहार में उन्हें सबसे अलग खड़ा करता है. जानकार कहते हैं कि नीतीश उम्र के ढलान पर हैं लेकिन आज भी उनकी राजनीति का जवाब बिहार में किसी सियासी दल के पास नहीं है. ऐसा टिकट बंटवारे के दरमियान साबित हो चुका है.

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