आज एक साथ मनाया जाएगा नवरात्र का दूसरा और तीसरा दिन,जानिए मां ब्रह्मचारिणी और मां चंद्रघंटा की पूजा विधि,कथा और आरती

नवरात्रि पर्व का आज दूसरा दिन है। लेकिन इस दिन दूसरा और तीसरा नवरात्र एक साथ मनाया जाएगा। ऐसा तिथि के क्षय के कारण हो रहा है। इस दिन द्वितीया तिथि सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक रहेगी तो वहीं इसके बाद तृतीया तिथि लग जाएगी जो 1 अप्रैल की सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर ही खत्म हो जाएगी। क्योंकि 1 अप्रैल को सूर्योदय के समय तृतीया तिथि मौजूद नहीं है इसलिए ही तीसरा नवरात्र भी 31 मार्च को ही मनाया जाएगा। जो भक्त नौ दिन के व्रत रह रहे हैं वो दूसरे नवरात्र के दिन ही मां ब्रह्मचारिणी के साथ मां चंद्रघंटा की भी पूजा करेंगे।नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा की पूजा के समय मां ब्रह्मचारिणी के साथ मां चंद्रघंटा की भी पूजा करें। दोनों ही माताओं के मंत्रों का जाप करें। साथ ही देवी दुर्गा के दोनों स्वरूपों की आरती भी करें। इससे एक ही दिन में आपको दोनों नवरात्र की पूजा का फल एक साथ मिल जाएगा।
मां ब्रह्मचारिणी पूजन मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
दधाना काभ्याम् क्षमा कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
मां ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। नारद मुनि के उपदेश से प्रेरित होकर, उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या आरंभ की। उनकी कठिन तपस्या के कारण ही उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।देवी ने अपनी तपस्या के पहले हजार वर्षों तक केवल फल और फूल खाकर बिताए, फिर सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर जीवन निर्वाह किया। इसके बाद, उन्होंने वर्षा और धूप की परवाह किए बिना अपनी तपस्या जारी रखी। कई हजार वर्षों तक, उन्होंने केवल टूटे हुए बिल्वपत्र खाए और निरंतर भगवान शिव की पूजा करती रहीं। अंत में, उन्होंने बिल्वपत्र खाना भी त्याग दिया और निर्जल और निराहार रहकर तपस्या में लीन हो गईं। देवी की कठोर तपस्या से उनका शरीर अत्यंत क्षीण हो गया।जब उन्होंने पत्ते खाना भी बंद कर दिया, तब उनका नाम अपर्णा पड़ा। देवी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर, ऋषि, मुनि और सिद्ध गणों ने उन्हें प्रणाम किया और कहा, ” हे देवी, आपको इस कठोर परिश्रम का पल जरूर मिलेगा और भगवान भोलेनाथ आपको अपने पति के रूप में जरूर स्वीकार करेंगे।मां ब्रह्मचारिणी की यह कथा और उनका तप इतना अद्भुत है कि भक्तों को इस कथा को सुनने मात्र से उनके समान ही तप करने की प्रेरणा और मनोबल प्राप्त होता है। माता की आराधना करने से जीवन में संयम, बल, सात्विक और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
मां चंद्रघंटा का स्तोत्र मंत्र:
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
मां चंद्रघंटा की आरती:
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। सन्मुख घी की ज्योत जलाये॥
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाये। मूर्ति चन्द्र आकार बनाये॥
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगत दाता॥
काँचीपुर स्थान तुम्हारा। कर्नाटिका में मान तुम्हारा॥
नाम तेरा रटूँ महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी॥
मां चंद्रघंटा की कथा:
प्रचलित कथा के अनुसार, माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का देवताओं के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था। महिषासुर का लक्ष्य देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना था और वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा से युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस मंशा का ज्ञान हुआ, तो वे चिंतित हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की व्यथा सुनकर क्रोध प्रकट किया, जिससे उनके मुख से ऊर्जा निकली। इस ऊर्जा से एक देवी प्रकट हुईं। भगवान शंकर ने उन्हें अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज और तलवार तथा सिंह प्रदान किया। इसके पश्चात मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।