लालू यादव नहीं बल्कि अब सब कुछ है तेजस्वी!जान लीजिए कैसे परिवार में शुरू हुई विरासत की लड़ाई?
बिहार की राजनीति में लालू यादव के परिवार का विवाद अब किसी फिल्म की कहानी जैसा लगता है. बाहर से सब मुस्कुराते दिखते हैं, लेकिन अंदर में खींचतान बहुत समय से चल रही है. हाल में जो ‘चप्पल कांड’ हुआ वह सिर्फ अंतिम और सबसे नाटकीय सीन था. असली स्क्रिप्ट यानी लड़ाई कई सालों से धीरे-धीरे पक रही थी. यह सिर्फ बहन-भाई का झगड़ा नहीं, बल्कि लालू की आरजेडी का भविष्य किसके हाथ में हो और पार्टी किस दिशा में जाए इस बात की बड़ी टकराहट है.कुछ साल पहले से रोहिणी आचार्य सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हो गईं. शुरू में उनके पोस्ट सरकारी कामकाज और विरोधियों पर होते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी बातों में तेजस्वी के फैसलों पर भी सवाल दिखने लगा. उन्हें लगता था कि पार्टी अब गरीबों दलितों पिछड़ों और आम लोगों वाली पुरानी राह से हट रही है. इसी वजह से परिवार के अंदर छोटी छोटी बातों से शुरू हुआ तनाव समय के साथ बड़ा होता गया.

महागठबंधन सरकार में जब तेजस्वी उपमुख्यमंत्री थे, तभी दोनों की सोच में फर्क साफ नजर आने लगा. रोहिणी को लगता था कि नौकरी देने की रफ्तार धीमी है. जाति गणना के मुद्दे पर वह तेजस्वी से ज्यादा तेज रुख अपनाती थीं. शराबबंदी पर भी दोनों अलग राय रखते थे. इन बातों से दोनों के बीच की दूरी और बढ़ती गई और घर के अंदर की बहसें अब छिपना बंद हो गईं.इसी बीच 2025 के चुनाव की तैयारी शुरू हुई और टिकट बंटवारे का दौर आया. यहीं दोनों के बीच सीधी टक्कर हो गई. रोहिणी चाहती थीं कि कुछ लोग जिन्हें वह जानती और भरोसा करती हैं उन्हें टिकट मिले, लेकिन तेजस्वी का मानना था कि यह चुनावी रणनीति से मेल नहीं खाता. बैठकों में कई बार माहौल गर्म हो गया और मतभेद खुलकर सामने आ गया. रोहिणी की शिकायत यह रही कि उनसे उम्मीद की जाती है कि वह सिर्फ परिवार की बहन बनकर चुप रहें. लेकिन जब वह जनता की बात करती हैं, तो उसे बगावत कहा जाता है. उन्हें लगता था कि आरजेडी का असली रंग फीका पड़ रहा है. दूसरी तरफ तेजस्वी पार्टी को ज्यादा आधुनिक और पेशेवर तरीके से चलाना चाहते हैं. दोनों की सोच का यह फर्क धीरे धीरे बड़ा टकराव बन गया.तेज प्रताप लंबे समय से महसूस करते हैं कि पार्टी और परिवार में उनकी अहमियत कम कर दी गई है. कई बार उनके बयान और उनके कदम परिवार के बाकी सदस्यों को असहज कर चुके हैं. तेजप्रताप को इस बात की भी तकलीफ रहती है कि चाहे वे कई मुद्दों पर खुलकर बोलें, चाहे लोगों के बीच जाएं, फिर भी राजनीति में असली फैसले तेजस्वी के हाथ में ही रहते हैं. कई बार उन्होंने यह बात इशारों में कही भी कि घर में उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाता. इस बात ने भी परिवार की अंदरूनी खाई को और चौड़ा कर दिया.तेज प्रताप को लगता रहा कि वह एक बड़े नेता के बेटे हैं और उनकी भूमिका पार्टी में ज्यादा मजबूत होनी चाहिए. लेकिन आरजेडी में असली कमान धीरे-धीरे सिर्फ तेजस्वी के पास जाती दिखी. इसी से उनके और तेजस्वी के बीच मनमुटाव बढ़ा. कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी तेज प्रताप की नाराजगी झलक जाती रही. इन्हीं कारणों से परिवार तीन हिस्सों में बंटता नजर आने लगा. एक तरफ रोहिणी की नाराजगी, दूसरी तरफ तेज प्रताप की और बीच में तेजस्वी जो पार्टी को संभालने की कोशिश कर रहे थे.इस लगातार बढ़ती तनाव भरी स्थिति में चप्पल कांड हुआ. एक पारिवारिक बैठक में बहस इतनी बढ़ गई कि माहौल बिगड़ गया और गुस्से में चप्पल चल गई. यह घटना जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही यह बताती भी है कि अब परिवार पहले जैसा एकजुट नहीं रहा. लालू और राबड़ी के सामने हुआ यह विवाद दिखाता है कि अंदर की लड़ाई अब छिप नहीं पा रही है. इसका असर पार्टी पर साफ दिख रहा है. तेजस्वी की जो छवि एक मजबूत और युवा नेता की बन रही थी उस पर इस विवाद का असर पड़ा है. कार्यकर्ता भी दो हिस्सों में बंटते नजर आ रहे हैं. विपक्ष ने भी तुरंत सवाल उठाना शुरू कर दिया कि जब परिवार खुद एक नहीं है तो वे राज्य को कैसे संभालेंगे.कुल मिलाकर चप्पल कांड सिर्फ एक नाटकीय सीन है. असली कहानी है परिवार के तीन अलग-अलग मोर्चे. एक तरफ रोहिणी हैं, जो मानती हैं कि पार्टी अपने मूल रास्ते से भटक रही है. दूसरी तरफ तेज प्रताप हैं, जिन्हें लगता है कि उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है. तीसरी तरफ तेजस्वी हैं, जो पार्टी को नए ढंग से चलाना चाहते हैं. यही असली लड़ाई है कि आने वाले समय में आरजेडी को किस रास्ते पर ले जाया जाएगा और यह रास्ता तय करने का हक आखिर किसके पास होगा.
