तेजप्रताप के रैलियों से परेशान हुई राजद?लालू के लाल किस पर पड़ेंगे भारी?

 तेजप्रताप के रैलियों से परेशान हुई राजद?लालू के लाल किस पर पड़ेंगे भारी?
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चेहरे पर फीकी मुस्कान और आंखों में हर चेहरे से उम्मीद भरे सवाल. क्या भरोसा करेंगे? क्या मुझे एक मौका देंगे? सफेद झकझक कुर्ता-पैजामा पहने तेज प्रताप यादव इन दिनों बिहार के कई विधानसभाओं में सभा कर रहे हैं. लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव परिवार और पार्टी से निकाले जाने के बाद अपनी पार्टी जनशक्ति जनता दल बनाकर बिहार चुनाव में उतर चुके हैं. उनकी हर जनसभा में भारी भीड़ उमड़ रही है. उनके लिए न तो बहुत बड़ा मंच बनाया जा रहा है और न ही कोई बहुत ज्यादा तामझाम. बस, वो छोटी-छोटी रैलियां कर रहे हैं. हौसले बुलंद हैं, मगर पता है उनके पास कुछ भी नहीं बचा. बस एक उम्मीद है. शायद परिवार ने साथ छोड़ दिया मगर जनता अपना ले।बिहार चुनाव के दौरान बड़े-बड़े नेताओं के उलट तेज प्रताप यादव का अलग अंदाज दिख रहा है. वो जनता से सीधे कनेक्ट करते दिख रहे हैं. कभी कार की छत पर ही बैठकर रैली को संबोधित कर देते हैं तो कभी किसी और तरीके से. उनकी रैलियों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग खुद ही उनको सुनने पहुंच रहे हैं.

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उनकी रैली में वीडियो रिकॉर्ड करने वालों की भरमार होती है. लगभग हर शख्स मोबाइल कैमरा लिए पूरा भाषण रिकॉर्ड करता है. कुछ तो भाषण के दौरान ही सीधे मंच पर पहुंच जाते हैं और सेल्फी लेते रहते हैं. ये कुछ अलग है, जो चुनावी रैलियों में आमतौर पर देखने को नहीं मिलता. विधायक-सांसद के भी मंच पर चढ़ने से पहले जनता हजार बार सोचती है, मगर तेज प्रताप यादव की रैली में ऐसा अपनापन होता है कि जनता को किसी तरह की झिझक नहीं रहती.ऐसा नहीं है कि तेज प्रताप की रैली में किसी तरह की अव्यवस्था के कारण लोग मंच पर चढ़ जा रहे हैं. असल में तेज प्रताप अपने भाषण के दौरान इतने हल्के-फुल्के ढंग से बात कर रहे हैं कि रैली में मौजूद हर शख्स को लग रहा है कि तेज प्रताप उनको मना नहीं करेंगे. वो लोगों के साथ दिल खोलकर बात कर रहे हैं. बता रहे हैं कि उनके साथ क्या हुआ? बता रहे हैं कि परिवार से पार्टी से बेदखल कर दिया गया है, पर उन्होंने हार नहीं मानी है. वो अकेले ही सबसे टकराने निकल पड़े हैं. वो रैलियों में महाभारत के पांच गांवों वाले प्रसंग का जिक्र भी करते हैं. बोलते हैं कि अगर पांडवों को कौरव पांच गांव दे देते तो महाभारत नहीं होता. वैसे ही अगर उन्हें भी पांच गांव मिल जाते तो ये दिन न आता. भगवान कृष्ण के यदा-यदा ही धर्मस्य… श्लोक को भी सुनाते हैं और जातिवाद से खुद को दूर करते हैं. जाहिर है वो एक तरफ तो भगवान कृष्ण के जरिए यादवों को जोड़ लेते हैं और दूसरे जातिवाद से दूरी बनाकर दूसरी जातियों को भी अपने से कनेक्ट कर लेते हैं. तेज प्रताप यादव के रैलियों में ज्यादातर युवा ही पहुंच रहे हैं. सोशल मीडिया पर तेज प्रताप के वीडियो इन दिनों खूब वायरल हो रहे हैं. साथ ही इंटरव्यू भी वो खूब दे रहे हैं. ऐसे में तेज प्रताप की बातें बिहार के घर-घर तक पहुंच रही हैं. अगर तेज प्रताप की रैलियों में आने वाली भीड़ और उनके वीडियो को फॉलो करने वाले लोग बूथ तक पहुंचे और उनकी पार्टी को वोट किया तो जाहिर है वो किसी न किसी का तो वोट काटेंगे ही. तेज प्रताप के लिए संवेदना तो वैसे पार्टी से परे हैं. आरजेडी ही नहीं, बल्कि हर दल के कार्यकर्ता और वोटर को उनके प्रति थोड़ी संवेदना तो है ही. हां, ये अलग बात है कि वोट कितने मिलेंगे, ये देखने वाली बात होगी. मगर ये तो तय है कि तेज प्रताप के प्रति सबसे ज्यादा संवेदना यादव जाति की ही है. समाज उनको इस हाल में नहीं देखना चाहता. ज्यादातर को लग रहा है कि तेज प्रताप के साथ गलत हुआ. साथ ही तेज प्रताप आरजेडी में हाशिये पर खड़े कार्यकर्ताओं और नेताओं को तवोज्जो भी दे रहे हैं. सबसे लगातार मिल रहे हैं. ऐसे में ये संवेदना वोटों में तब्दील हुई और तेज प्रताप अपनी पार्टी से कुछ सीटें निकाल लेते हैं तो जाहिर है तेज प्रताप का कद बढ़ जाएगा. वो खुद भी इस बात को मान रहे हैं कि इस चुनाव में वो सरकार बनाने के लिए नहीं लड़ रहे हैं. वो जमीन पर अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए लड़ रहे हैं. जाहिर है एक वर्ग को तेज प्रताप में अपने लिए भी मौका दिख रहा है।

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