रावण ने आखिर क्यों रचा था कालजयी शिव तांडव स्तोत्र? पढ़िए पूरी पौराणिक कथा!

 रावण ने आखिर क्यों रचा था कालजयी शिव तांडव स्तोत्र? पढ़िए पूरी पौराणिक कथा!
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हिंदू धर्मग्रंथों में रावण को एक प्रकांड विद्वान और शिव के परम भक्त के रूप में जाना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली शिव स्तोत्र ‘शिव तांडव स्तोत्र’ रावण के अपार ज्ञान का नहीं, बल्कि उसकी एक बड़ी भूल और उसके बाद पैदा हुए आत्मग्लानि का परिणाम था? पौराणिक कथा के अनुसार, जब रावण का अहंकार चूर-चूर हुआ और उसने महादेव को प्रसन्न करने के लिए अद्भुत काव्य की रचना की.पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण अपनी लंका की ओर लौट रहा था. रास्ते में विशाल कैलाश पर्वत आया. रावण के मन में अपनी शक्ति का इतना अहंकार था कि उसने सोचा कि यदि वह कैलाश को ही उठाकर लंका ले जाए, तो उसे बार-बार वहां आने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उसने अपनी बीस भुजाओं से कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश की. पर्वत हिलने लगा, जिससे वहां मौजूद शिव के गण और माता पार्वती विचलित हो गईं.महादेव ने जब देखा कि रावण अहंकार वश पर्वत को उखाड़ने का प्रयास कर रहा है, तो उन्होंने खेल-ही-खेल में अपने बाएं पैर के अंगूठे से पर्वत को थोड़ा दबा दिया.

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शिव के मात्र एक अंगूठे के भार से विशाल कैलाश पर्वत स्थिर हो गया और रावण की भुजाएं पर्वत के नीचे दब गईं. रावण का बल धरा का धरा रह गया और वह असहनीय पीड़ा से चिल्लाने लगा. उसे अपनी भूल का अहसास हो गया कि उसने साक्षात महादेव की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की थी.पीड़ा से निकला स्तुति गानपर्वत के नीचे दबे हुए रावण ने महसूस किया कि उसे केवल महादेव ही इस संकट से बचा सकते हैं. अपनी पीड़ा को भूलकर, उसने उसी क्षण शिव की स्तुति करना प्रारंभ किया. उसके मुख से जो छंद और शब्द निकले, वे इतने लयबद्ध और शक्तिशाली थे कि पूरा ब्रह्मांड गूंज उठा.यही काव्य ‘शिव तांडव स्तोत्र’ कहलाया. इसमें रावण ने शिव के रूप, उनकी जटाओं से गिरती गंगा, उनके डमरू की ध्वनि और उनके तांडव नृत्य का ऐसा वर्णन किया जो आज भी अद्वितीय माना जाता है. यह स्तोत्र शिव के तांडव नृत्य का वर्णन करता है, जो सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है. यह ब्रह्मांड के संतुलन को दर्शाता है और इसमें इतनी ऊर्जा है कि यह किसी भी बड़ी परेशानी से निकलने का मार्ग दिखाता है.क्यों खास है यह स्तोत्र?रावण द्वारा रचित इस स्तोत्र की कुछ विशेषताएं इसे सबसे अलग बनाती हैं.अलंकारों का प्रयोग: इसमें अनुप्रास और यमक अलंकार का बहुत सुंदर प्रयोग है.लय और गति: इसकी गति बहुत तीव्र है, जो भगवान शिव के तांडव की ऊर्जा को दर्शाती है.महादेव का वरदान: रावण की इस भक्ति और स्तुति से प्रसन्न होकर शिव ने न केवल उसे मुक्त किया, बल्कि उसे चंद्रहास नामक अमोघ खड्ग (तलवार) भी भेंट की थी.

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