फिर से चर्चा और विवाद में आई ये वेब सीरीज,देखने से पहले जान लीजिए कहानी
चार साल के लंबे इंतजार के बाद एमेजन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज’ अपना चौथा और आखिरी सीजन लेकर आई है. ये वो शो है जिसने जब शुरुआत की थी, तब इसे भारतीय ओटीटी की सेक्स एंड द सिटी कहा गया था. लेकिन अब वक्त बदल चुका है. साल 2024-25 की इंडियन ऑडियंस वो नहीं है जो 2019 में थी. आज के दौर में औरतें अपनी मर्जी की मालिक हैं और ये बात अब सिर्फ वेब सीरीज के डायलॉग तक सीमित नहीं रही, बल्कि असल जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है. ऐसे में क्या ये चारों सहेलियां दमयंती, अंजना, उमंग और सिद्धि कुछ नया पेश कर पाई हैं या फिर वही पुरानी कोल्ड ड्रिंक हमें नई बोतल में परोस दी गई है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं.सीजन 4 की शुरुआत वैसी ही होती है जैसी इस सीरीज की फितरत रही है, चमक-धमक, शोर-शराबा और इमोशंस का रायता. कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पिछली बार रुकी थी, लेकिन इस बार मामला शादी का है. सिद्धि (मानवी गगरू) दुल्हन के जोड़े में है, उसकी घबराहट सातवें आसमान पर है और बाकी सहेलियां उसे संभालने में लगी हैं. लेकिन ये सिर्फ एक शादी नहीं है, ये इन चारों की जिंदगी के अगले पड़ाव की शुरुआत है.जहां एक तरफ अंजना अपनी बेटी और करियर के बीच बैलेंस बिठा रही है, वहीं दमयंती अपने परिवार और भाई के साथ उलझे रिश्तों को सुलझाने की कोशिश कर रही है. उमंग अपनी पुरानी यादों (समारा) से पीछा छुड़ाकर कुछ नया ढूंढ रही है, और सिद्धि… खैर, सिद्धि तो अपनी पर्सनल लाइफ और करियर के बीच ही झूल रही है. इनकी जिंदगी किस तरह से आगे बढ़ती है? ये जानने के लिए आपको ये सीरीज देखनी होगी.‘फोर मोर शॉट्स प्लीज’ के सीजन 4 में इस बार भी दोस्ती तो नजर आती है, लेकिन उसमें वो पहले वाली ताजगी कम और थकान ज्यादा दिख रही है. ऐसा लगता है जैसे किरदार भी अब इस भागदौड़ से थक चुके हैं और बस एक सुकून भरा अंत चाहते हैं.इस सीजन का निर्देशन अरुणिमा शर्मा ने किया है, तो देविका भगत और इशिता मोइत्रा इस सीरीज की राइटर हैं. इन सभी का काम देखकर ऐसा लगता है कि मेकर्स एक ‘बबल’ यानी बुलबुले में जी रहे हैं. शो की दुनिया आज भी उतनी ही ‘ग्लॉसी’ है.

शानदार ऑफिस, महंगे कपड़े और हर बात पर टकीला के शॉट्स. लेकिन भैया, असली इंडिया तो इससे बहुत अलग है.राइटिंग की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि ये शो अब भी उन्हीं मुद्दों पर अटका है जिन्हें ये पहले तीन सीजन में भुना चुका है. फेमिनिज्म का मतलब सिर्फ जोर-जोर से चिल्लाना या हर बात पर विद्रोह करना नहीं होता, लेकिन यहां किरदार अब भी उसी ढर्रे पर हैं. डायलॉग में वो ‘शॉक वैल्यू’ डालने की कोशिश की गई है जो अब पुरानी पड़ चुकी है. खासकर सिद्धि का ओपन माइक वाला हिस्सा, जहां वो अपनी निजी जिंदगी और बेडरूम की बातें सरेआम करती है. पहली बार में ये क्रांतिकारी (रिबेल) लग सकता था, लेकिन अब ये थोड़ा अजीब और जबरदस्ती का लगता है. क्योंकि जनता अब स्मार्ट हो गई है, उसे सिर्फ शॉक नहीं, सब्सटेंस (ठोस कहानी) चाहिए.परफॉर्मेंस की बात करें तो ये शो आज भी अपने कलाकारों के कंधों पर टिका है. कीर्ति कुल्हारी (अंजना) ने इस बार बाजी मारी है उनका किरदार सबसे ज्यादा सुलझा हुआ और मैच्योर लगता है. अपनी बेटी के साथ उनकी बॉन्डिंग और नए पार्टनर (डिनो मोरिया) के साथ उनकी केमिस्ट्री देखने लायक है. वो चिल्लाती नहीं हैं, लेकिन अपनी आंखो और खामोशी से बहुत कुछ कह जाती हैं. सयानी गुप्ता (दमयंती) हमेशा की तरह कॉन्फिडेंट हैं. इस बार उनका ट्रैक उनके भाई (कुणाल रॉय कपूर) के साथ है, जो इस पूरे सीजन का सबसे खूबसूरत हिस्सा है. दोनों के बीच की नोक-झोंक और इमोशनल सीन बहुत ही ‘रियल’ लगते हैं.मानवी गागरू (सिद्धि) एक बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन उनके किरदार की राइटिंग ने उन्हें थोड़ा कमजोर कर दिया है. बावजूद इसके, मानवी ने अपनी कॉमिक टाइमिंग और इमोशनल सीन्स को बखूबी निभाया है. बानी जे का (उमंग) किरदार इस बार थोड़ा बिखरा हुआ सा लगा. उनकी कहानी में वो गहराई नहीं नजर आती, जो पिछले सीजन्स में थी. डिनो मोरिया और कुणाल रॉय कपूर ने सीरीज में जान फूंक दी है. डिनो मोरिया जहां अपनी स्क्रीन प्रेजेंस से ग्लैमर बढ़ाते हैं, वहीं कुणाल रॉय कपूर ने भाई के रोल में वो सादगी और गहराई दिखाई है जिसकी इस ‘लाउड’ शो को सख्त जरूरत थी.क्या खटका और क्या भटका?सीरीज की सबसे बड़ी समस्या है ‘लस्ट’ का जरूरत से ज्यादा प्रदर्शन. देखिए, एडल्ट शो है तो एडल्ट बातें होना लाजिमी है, लेकिन जब पूरी कहानी सिर्फ इसी के इर्द-गिर्द घूमने लगे, तो बोरियत होने लगती है. सिद्धि के ट्रैक में जिस तरह से संभोग को लेकर जुनून दिखाया गया है, वो कई बार कहानी से ध्यान भटकाता है. वहीं दूसरी तरफ, शो की ‘अनरियलिस्टिक’ दुनिया भी कभी-कभी खटकती है. यहां करियर की मुश्किलें चुटकियों में हल हो जाती हैं, बैंकॉक की ट्रिप प्लान करना आसान है, और हर एक्स-बॉयफ्रेंड अचानक से इतना समझदार हो जाता है कि वो पुरानी गलतियों के लिए शुक्रिया अदा करने लगता है. ये सब फिल्मी लगता है, उस ‘रॉ’ और ‘रियलिस्टिक’ फील से बहुत दूर जो आज की वेब सीरीज की ताकत होती है.अगर आप पिछले तीन सीजन से इन लड़कियों की दोस्ती साथ जुड़े हुए हैं, तो आप इसे जरूर देखें. इस शो के फैंस के लिए ये एक ‘गिल्टी प्लेजर’ की तरह है यानी आपको पता है कि ये थोड़ा ज्यादा है, थोड़ा बनावटी है, लेकिन फिर भी आप देखना चाहते हैं कि अंत क्या होगा.‘फोर मोर शॉट्स प्लीज’ सीजन 4 इस बात का सबूत है कि कभी-कभी सही समय पर रुक जाना ही सबसे बड़ी समझदारी होती है. शो ने अपने समय में महिलाओं की आजादी और उनकी पसंद को लेकर जो आवाज उठाई थी, वो काबिले तारीफ थी. लेकिन अब वो बातें आम हो चुकी हैं. अब लोग औरतों को सिर्फ शराब पीते और गालियां देते नहीं, बल्कि उनके संघर्ष से लड़ते हुए, अपने हक के लिए खड़े होते हुए को देखना चाहते हैं.अंत में बस इतना ही, ये सीजन दोस्ती के नाम एक आखिरी जाम तो है, लेकिन इसका नशा अब उतरने लगा है. अगर आप इन किरदारों के पुराने साथी रहे हैं, तो यादों के लिए इसे देख लीजिए. वरना, चमक-धमक वाली इस दुनिया में अब भावनाओं की गहराई कम और दिखावे का शोर ज्यादा रह गया है.
