गांवों की अर्थव्यवस्था होगी मजबूत,आज संसद में पेश होगा VB-G Ram G बिल

 गांवों की अर्थव्यवस्था होगी मजबूत,आज संसद में पेश होगा VB-G Ram G बिल
Sharing Is Caring:

सरकार विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) या वीबी-जी राम जी नाम से कानून बनाने की तैयारी कर रही है। आज संसद में शिवराज चौहान इस बिल को पेश करेंगे। यह कई मायने में मनरेगा से बेहतर है। मजबूत और टिकाऊ ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के मकसद से लाए जा रहे इस विधेयक के प्रावधान न सिर्फ ग्रामीण मजदूरों, बल्कि किसानों के हित भी सुनिश्चित करेंगे। सरकार के मुताबिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के साथ यह कानून विकसित भारत की नींव को और मजबूत करेगा।नई योजना के तहत निर्मित परिसंपत्तियां विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना संग्रह (नेशनल रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक) में दर्ज की जाएंगी। इससे एकीकृत एवं समन्वित रूप से राष्ट्रीय विकास की रणनीतियां बनाने में मदद मिलेगी। ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्यों को सालाना 125 दिनों की अकुशल रोजगार की कानूनी गारंटी देने वाला यह कानून 20 वर्ष पुरानी योजना मनरेगा की जगह लेगा।

1000641705

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पहले से चली आ रही एक योजना में बदलावों की जरूरत क्यों पड़ी। यह किस तरह उससे अलग और बेहतर है और क्या इससे वाकई ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलेगी। ऐसे ही तमाम सवालों और उनके जवाब समझने की कोशिश करते हैं…मनरेगा 2005 के भारत के लिए बनाई गई थी, लेकिन ग्रामीण भारत अब पूरी तरह बदल चुका है। ग्रामीण भारत के विकास के लिए तेज, टिकाऊ व समावेशी रोजगार ढांचा तैयार करना जरूरी है। गरीबी में भारी गिरावट आई है, जो वर्ष 2011-12 के 25.7% से वर्ष 2023-24 में मात्र 4.86% रह गई। यह गिरावट एमपीसीई व नाबार्ड के रेक्स सर्वे में दर्ज बढ़ती खपत, आय तथा वित्तीय पहुंच से संभव हुई है। मजबूत सामाजिक सुरक्षा, बेहतर कनेक्टिविटी, गहन डिजिटल पहुंच और विविध ग्रामीण आजीविका के साथ पुराना ढांचा अब आज की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से मेल नहीं खाता। संरचनात्मक बदलाव के चलते मनरेगा का अनियंत्रित और खुला मॉडल अब अप्रासंगिक हो चुका था।मानक वित्तपोषण मनरेगा को भारत सरकार की अधिकांश योजनाओं में अपनाई जाने वाली बजट प्रणाली से जोड़ता है, और इससे रोजगार की गारंटी में भी कोई कमी नहीं आएगी। इस बदलाव से योजना अधिक अनुशासित, पारदर्शी और प्रभावी बनेगी, जहां संसाधनों का उपयोग तार्किक ढंग से होगा। मांग आधारित मॉडल अप्रत्याशित आवंटन और बजट में विसंगति पैदा करता है। इसके विपरीत, मानक वित्तपोषण वस्तुनिष्ठ मानकों पर आधारित होता है, इससे पूर्वानुमान योग्य व तार्किक योजना बना सकते हैं। मानक वित्त पोषण में केंद्र व राज्य जिम्मेदारी साझा करेंगे। यदि तय समय में काम नहीं दिया गया, तो बेरोजगारी भत्ता देना होगा। गारंटीशुदा रोजगार का अधिकार कानूनी रूप से पूरी तरह सुरक्षित और संरक्षित रहेगा।मनरेगा में कई बड़े सुधार हुए, पर गहरी संरचनात्मक समस्याओं को दूर नहीं किया जा सका। हालांकि वित्त वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2025-26 के दौरान मनरेगा की कई मुख्य भी उपलब्धियां रहीं। महिलाओं की भागीदारी 48% से बढ़कर 56.74% हुई। साथ ही आधार-सीडेड सक्रिय मजदूरों की संख्या 76 लाख से बढ़कर 12.11 करोड़ पर पहुंची। जियो-टैग संपत्तियां शून्य से बढ़कर 6.44 करोड़ हुईं। ई-भुगतान 37% से बढ़कर 99.99% हुआ, व्यक्तिगत परिसंपत्तियां 17.6% से बढ़कर 62.96% हुईं। हालांकि, इस प्रगति के बावजूद दुरुपयोग की घटनाएं जारी रहीं, डिजिटल उपस्थिति को चकमा दिया जाता रहा। इसलिए, आधुनिक और मजबूत व्यवस्था की जरूरत थी।

Comments
Sharing Is Caring:

Related post