चैत्र नवरात्र के छठवां दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा,जाने शुभ मुहूर्त,भोग और मंत्र और लाभ
आज नवरात्रि का छठवां दिन है और आज मां दुर्गा के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाएगी। दुर्गा सप्तशती में मध्य चरित्र जिसमें महिषासुर नामक असुर का उल्लेख मिलता है, उस असुर का वध करने वाली देवी मां कात्यायनी ही हैं। इसलिए मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। मां कात्यायनी आंतरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली जगत जननी हैं। मान्यता है कि विधि विधान के साथ माता की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और धन-धान्य में वृद्धि होती है। मां कात्यायनी ब्रज मंडल की अधिष्ठात्रि देवी भी हैं।
इस तरह पड़ा मां का नाम कात्यायनी
महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महर्षि के यहां जन्म लिया था। महर्षि कात्यायन के यहां जन्म लेने पर माता का नाम कात्यायनी पड़ा। मां दुर्गा ने ऋषियों और देवताओं के कार्यों को सिद्ध करने के लिए महर्षि के यहां जन्म लिया था। माता कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं और इनका ध्यान कर लेने भर से जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं। तीन दिनों तक ऋषियों और मुनियों की पूजा स्वीकार करने के बाद देवी ने विदा लिया था और महिषासुर का अंत किया था।
ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कात्यायनी-मां कात्यायनी को ब्रज की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्ही माता की पूजा की थी। गोपियों द्वारा यमुना तट पर पूजा करने के बाद माता यहां प्रतिष्ठित हुईं। भगवान कृष्ण ने भी मां कात्यायनी की पूजा की थी। माता कात्यायनी की पूजा अर्चना करने से जीवन के कष्ट तो दूर होते ही हैं। साथ ही विवाह में अगर कोई समस्या आ रही होती है तो वह भी माता का नाम लेने से भर से दूर हो जाती है। यह दिन विवाह योग्य भक्तों के लिए बहुत शुभ माना जाता है। माता के आशीर्वाद से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मां कात्यायनी का स्वरूप-मां कात्यायनी अद्भुत तरंरों से सरोबर आज्ञा चक्र की ऊर्जा हैं। आज्ञा चक्र शरीर में शक्ति केंद्र का छठवां मूल चक्र है। माता कात्यायनी का संबंध बृहस्पति ग्रह से हैं और आशिंक रूप से शुक्र से भी है। महिषासुरमर्दिनी का यह स्वरूप बेहद दिव्य और भव्य है। मां स्वर्ण के समान चमकीली और भास्वर हैं। माता कात्यायनी की चार भुजाएं हैं, जिनमें दाईं ओर वाली भुजा अभय मुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में कमल है। वहीं बाईं ओर की तरफ ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीते वाले में कमल सुशोभित है। मां कात्यायनी की सवारी सिंह है।
मां कात्यायनी पूजा विधि-
नवरात्रि के छठवें दिन की पूजा भी अन्य नवरात्रि की तरह ही की जाएगी। मां कात्यायनी की पूजा शुरू करने से पहले चारों तरफ गंगाजल से छिड़़काव करें और फिर ‘कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते।’ मंत्र का जप करें। इसके बाद माता की घी का दीपक जलाकर पूजा अर्चना का कार्यक्रम शुरू करें। माता को पीले फूल और पीले नैवेघ अर्पित करें। साथ ही रोली, अक्षत, लाल चुनरी, धूप, दीप आदि चीजों को अर्पित करें और पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे भी लगाते हैं। अगर आप अग्यारी करते हैं तो माता को लौंग बताशा आदि चीजें अर्पित करें। साथ ही आज माता की पूजा में शहद भी अर्पित करें। इसके बाद दीपक या कपूर से माता की आरती उतारें और माता के जयकारे लगाएं। इसके बाद दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं। साथ ही मां भगवती के मंत्रों का भी जप करें। शाम के समय में भी मां दुर्गा की आरती उतारें।
मां कात्यायनी का भोग और उपाय-नवरात्रि के छठवें दिन माता की पूजा मधु यानी शहद से करना बहुत उत्तम माना गया है। आज माता को भोग में शहद अर्पित करें। इसके लिए आप पान में शहद मिलाकर माता को भेंट कर सकते हैं। शहद के अलावा आप मां कात्यायनी को मालपुआ को भोग भी लगा सकते हैं। शीध्र विवाह के लिए गोधुलि बेला में पीले कपड़े धारण कर माता की पूजा करें। इसके लिए सबसे पहले दीपक जलाएं और माता को पीले फूल चढ़ाएं। इसके बाद माता को शहद के साथ तीन हल्दी की गाठें चढ़ाएं। हल्दी की गाठों को अपने पास सुरक्षित रखें।
माता कात्यायनी की मंत्र-
कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते॥
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां कात्यायनी की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माता कात्यायनी की आरती-
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।
मां कात्यायनी की व्रत कथा:
पौराणिक कथानुसार, एक वनमीकथ नामक महर्षि थे। उनका एक पुत्र कात्य था। इसके बाद कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया, उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए कठोर तप की थी। मां भगवती ने महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए।तब कात्यायन ऋषि ने माता को अपनी मनसा बताई। इसपर देवी भगवती ने वचन दिया कि वह उनके घर में पुत्री के रूप में अवश्य जन्म लेंगी।फिर, एक बार तीनों लोकों पर महिषासुर नामक दैत्य का अत्याचार बढ़ गया। देवी और देवता उसके कृत्य से परेशान हो गए। उसी समय ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव के प्रभाव से माता का महर्षि कात्यायन के घर जन्म हुआ। इसलिए मां के इस स्वरूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।कात्यायन ऋषि ने माता के जन्म के बाद सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीन दिनों तक माता की पूजा की। तत्पश्चात दशमी के दिन मां कात्यायनी ने महिषासुर नामक दैत्य का वध कर तीनों लोकों को उसके अत्याचार से बचा लिया।