मौलाना महमूद मदनी के बयान से गरमाई सियासत,स्कूलों में जिहाद पढ़ाने की कर दी वकालत

 मौलाना महमूद मदनी के बयान से गरमाई सियासत,स्कूलों में जिहाद पढ़ाने की कर दी वकालत
Sharing Is Caring:

मौलाना महमूद मदनी ने जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से एक बार फिर जिहाद, देश की सियासत, स्कूलों के पाठ्यक्रम जैसे ज्वलंत मुद्दों पर बात की। मदनी ने कांग्रेस के जनाधार पर सवाल खड़े करने के अलावा देशभर के स्कूलों के पाठ्यक्रम में जिहाद को पढ़ाने पर भी जोर दिया। मदनी ने कहा कि जो लोग जिहाद का विरोध कर रहे हैं वे गद्दार हैं और आतंकवाद फैलाने का काम कर रहे हैं।इससे पहले एक अन्य साक्षात्कार में भी मदनी ने जिहाद लफ्ज के दुरुपयोग को लेकर चिंता का इजहार किया था। मदनी ने कहा था कि गालियां देने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा था, ‘अगर अन्याय हो रहा है, तो उसके खिलाफ आवाज उठाना भी जिहाद है। वंदे मातरम को लेकर अपनी टिप्पणियों के बारे में एक सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी जबरदस्ती करवाई जा रही है।

1000633475

जगह-जगह कहा जा रहा है कि इसे बोलें ही बोलें। …ये तो आइडिया ऑफ इंडिया नहीं है।उन्होंने कहा कि जिहाद शब्द को इस्लाम से जोड़कर बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से गालियां दी जाती थी। यह सिलसिला लंबे समय तक जारी रहा। बकौल मदनी, ‘अब सरकारी स्तर पर मुसलमानों को गाली दी जा रही है। यह मान लिया गया है कि सभी मुसलमान ‘जिहादी’ और ‘फसादी’ हैं। ऐसे में यह मेरी जिम्मेदारी बन गई है कि मैं जिहाद के असली अर्थ समझाऊं।’मदनी ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, उस समय 90% मौन बहुमत था; अब यह घटकर 60 फीसदी हो गया है। जमीयत प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट से जुड़े एक अन्य सवाल के जवाब में कहा, ‘आप मुझ पर यह कहने का आरोप लगा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट गलत है… मैं केवल कोई व्यक्ति नहीं हूं; मैं एक ऐसे संगठन से जुड़ा हूं जो एक खास समुदाय से जुड़ा है। अगर मैं अपने समुदाय की भावनाओं को देश को नहीं बताऊंगा, तो ऐसा करना नाइंसाफी होगी।उन्होंने कहा, ‘संविधान की अवधारणा बहुसंख्यकवाद के खिलाफ है। हालांकि, एक ऐसी जगह है, जहां हमें लगता है कि हमारी असुरक्षा की भावना को समझने के लिए आपका मुसलमान होना जरूरी है। बदले हुए परिदृश्यों की तरफ संकेत करते हुए जमीयत प्रमुख मदनी ने कहा, आज हमें एक ऐसी जगह पर खड़ा कर दिया गया है जहां हमें लगता है कि हमें हाशिये पर धकेला जा रहा है। मैं इस बात का सम्मान करता हूं कि आप मुझसे असहमत हो सकते हैं, लेकिन अगर मैं कुछ कहना चाहूं, तो नहीं कह सकता। देश के हालात को देखते हुए मैं चेतावनी देना चाहता हूं।उन्होंने जिहाद को लेकर अपने पुराने बयान और उसके कारण उपजे विवाद को लेकर कहा, ‘मैंने जो कुछ भी कहा है उसका आतंकवाद और हिंसा से कोई लेना-देना नहीं है। हम राष्ट्रीय विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर एकजुट हैं। जब हम इन मुद्दों पर सहमत होते हैं, तो उनके लिए लड़ना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। मदनी ने सवाल किया, अगर कोई आतंकवादी इसे जिहाद कहता है, तो क्या हमें सहमत होना चाहिए कि यह जिहाद है और आतंकवादी को फायदा पहुंचाना चाहिए? या हमें उससे असहमत होना चाहिए और उसकी मान्यताओं पर चोट करनी चाहिए?’मदनी ने सवाल किया, क्या हम वही इस्तेमाल करेंगे जो पाकिस्तान करता है, या हम पाकिस्तान को पूरी दुनिया के सामने बेनकाब करेंगे? जमीयत प्रमुख ने कहा, ‘लोग समझने को तैयार नहीं हैं। हम पिछले 30 वर्षों से इसे समझाने की कोशिश कर रहे हैं, कि पाकिस्तानियों के जाल में न फंसें जो गलत धारणाएं फैला रहे हैं। वे खुद को मजबूत कर रहे हैं और हमें कमजोर कर रहे हैं… मेरा मकसद केवल जिहाद की सही परिभाषा बतानी थी।गौरतलब है कि बीते दिनों मौलाना मदनी की वह टिप्पणी चर्चा में रही जिसमें उन्होंने जुल्म खत्म न होने तक जिहाद जारी रहने की बात कही थी। इस्लामी विद्वान मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति अत्यंत संवेदनशील और चिंताजनक है। दुःख की बात है कि एक विशेष समुदाय को जबरन निशाना बनाया जा रहा है, जबकि अन्य समुदायों को कानूनी रूप से शक्तिहीन, सामाजिक रूप से अलग-थलग और आर्थिक रूप से अपमानित किया जा रहा है। मदनी ने कहा कि इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों ने जिहाद जैसी इस्लाम की पवित्र अवधारणा को दुर्व्यवहार, अव्यवस्था और हिंसा से जुड़े शब्दों में बदल दिया है। ‘लव जिहाद’, ‘भूमि जिहाद’, ‘शिक्षा जिहाद’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके मुसलमानों को गहरी ठेस पहुंचाई गई है। इससे धर्म का अपमान होता है।

Comments
Sharing Is Caring:

Related post