तीसरा गठबंधन के लिए बिहार में तैयारी हुई शुरू,जान लीजिए किसका क्या रहेगी स्थिति?

बिहार विधानसभा चुनाव अब 4 महीने बाद ही होना है. मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच होगा यह तय है. वैसे इस बार भी तीसरे मोर्चे को लेकर सस्पेंस बना हुआ है.राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जो पिछला अनुभव तीसरे मोर्चे का रहा है वह बहुत बेहतर नहीं रहा है. इसलिए तीसरे मोर्चे को लेकर इस बार अभी तक चर्चा नहीं हो रही है।बिहार विधानसभा चुनाव में जहां एनडीए में भाजपा, जदयू, हम, लोजपा रामविलास और राष्ट्रीय लोक मोर्चा पांच दल शामिल हैं. वहीं महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वीआईपी के साथ तीन वामपंथी दल भी हैं. यानी कुल 6 दल हैं, पशुपति पारस भी आना चाहते हैं, यदि आ गए तो 7 दल हो जाएगा. लड़ाई इनके बीच ही होना है लेकिन तीसरे मोर्चे की भी चर्चा समय-समय पर होती रहती है।

इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए कई छोटे दल ताल ठोक रहे हैं. प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है. मायावती की बसपा भी 243 सीटों पर तैयारी कर रही है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम 100 सीटों पर तैयारी कर रही है. इसके अलावा कई छोटे दल और भी मैदान में है, जिसमें शिवदीप लांडे की पार्टी हिन्द सेना है जिसने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप भी मैदान में है. जिसने सभी 243 सीटों पर लड़ने की बात कह रही है।पिछले दो विधानसभा चुनाव की चर्चा करें तो 2015 और 2020 में एनडीए और महागठबंधन के बीच ही मुकाबला हुआ. हालांकि कई सीटों पर तीसरा मोर्चा ने खेल बिगाड़ा था।समाजवादी धर्मनिरपेक्ष नाम का तीसरा मोर्चा बनाया था, लेकिन सफल नहीं रहा. 2015 में जिन 6 पार्टियों ने मोर्चा बनाया था, उसमें लालू प्रसाद यादव से नाराज होकर समाजवादी पार्टी भी शामिल थी और शरद यादव की पार्टी भी।6 दलों में सबसे अधिक सीट पर मुलायम सिंह की पार्टी समाजवादी पार्टी 85 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. समाजवादी पार्टी एक भी सीट जीत नहीं पाई थी. वोट प्रतिशत भी 1.83% रहा था. प्रमुख पार्टियों में एनसीपी भी थी जो 40 सीटों पर लड़ी लेकिन एक भी सीट पर उम्मीदवार जीत नहीं पाये. एनसीपी का वोट प्रतिशत भी 2.82% रहा था।2015 में महागठबंधन में नीतीश-लालू साथ लड़े थे. जहां जदयू को 71 सीट पर जीत मिली तो वहीं राजद को 80 सीट पर जीत मिली थी. इसके अलावा कांग्रेस 27 सीटों पर चुनाव जीती थी. इसके साथ प्रचंड बहुमत के साथ महागठबंधन ने सरकार बनाया था. बीजेपी 157 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और केवल 53 ही जीत पायी.2015 विधानसभा चुनाव में चार निर्दलीय भी चुनाव जीतकर आए थे. वैसे तीसरे मोर्चे की बात करें तो इसमें शामिल सभी 6 दलों में से अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. तीसरा मोर्चा में बीच में खटपट भी हुआ. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नाराज होकर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी।2020 में भी तीसरा मोर्चा ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्यूलर फ्रंट बनाया गया. उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा का गठन किया गया. इसमें 6 दल शामिल थे. उपेंद्र कुशवाहा के साथ ओवैसी की पार्टी और मायावती की बीएसपी भी शामिल थी।इस चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को सफलता नहीं मिली, उनकी पार्टी का खाता तक नहीं खुला, जबकि खुद मुख्यमंत्री के उम्मीदवार थे. बसपा को एक सीट पर, जबकि एआईएमआईएम को 5 सीटों पर जरुर सफलता मिली. हालांकि बाद में पार्टियों में टूट हो गई. बसपा के विधायक जदयू में शामिल हो गए और एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए.उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और तीसरा मोर्चा के अन्य घटक दलों का स्ट्राइक रेट बहुत अच्छा नहीं रहा. यहां तक कि नोटा से भी कम वोट मिला. यह जरूर रहा कि तीसरे मोर्चे के कारण एनडीए और महागठबंधन को कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा।बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा बनेगा कि नहीं यह बड़ा सवाल है. वैसे चुनाव में अभी 4 महीने का समय है. कई छोटे दल अपनी संभावना भी तलाश रहे हैं, तो वहीं सीट बंटवारे में महागठबंधन और एनडीए में विवाद हुआ तो कुछ दल वहां से बाहर निकल सकते हैं तब तीसरे मोर्चे का आकार बिहार में देखने को मिल सकता है।