जातिगत जनगणना से कुशवाहा,यादव और कुर्मी जातियों की बढ़ी चिंता,कहीं उल्टा न पड़ जाएं तेजस्वी और नीतीश का दांव?

 जातिगत जनगणना से कुशवाहा,यादव और कुर्मी जातियों की बढ़ी चिंता,कहीं उल्टा न पड़ जाएं तेजस्वी और नीतीश का दांव?
Sharing Is Caring:

मोदी सरकार जातीय जनगणना के जरिए सिर्फ जातियों का आंकड़ा ही नहीं जुटाएगी बल्कि ये भी पता लगाएगी कि उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति क्या है. ऐसे में ओबीसी आरक्षण के समीक्षा की रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट पहले ही राष्ट्रपति को सौंपी जा चुकी है, जिसे लागू करने की मांग उठने लगी है. इस तरह जातिगत जनगणना के साथ अगर सरकार रोहिणी कमीशन को अमलीजामा पहनाने का काम किया जाता है तो ओबीसी की तीन बड़ी जातियां कुशवाहा,यादव और कुर्मी समुदाय के लिए सियासी टेंशन बढ़ा सकती हैं।राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार जाति जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद, सरकार को ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के मुद्दे का रास्ता हल करना होगा. रोहिणी आयोग की स्थापना इस मुद्दे से निपटने के लिए ही की गई थी. कम प्रभावशाली ओबीसी समूहों की पहचान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी सरकारी नौकरियों तक बेहतर हो सके. हालांकि, रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी, लेकिन जाति जनगणना के आंकड़े आने के साथ ही ओबीसी आरक्षण को पुनर्गठित करने मांग उठने लगी है. बीजेपी के सहयोगी दलों ने रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की भी मांग की है।कमीशन की ही मानें तो ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा यादव, कुर्मी, मौर्य(कुशवाहा), जाट समुदाय को मिल रहा जबकि अति-पिछड़ी जातियों को उतना लाभ नहीं मिला. पिछले तीन दशकों में ओबीसी आरक्षण का 50 फीसदी लाभ 48 जातियों को मिला. इसी के चलते ओबीसी की अन्य दूसरी जातियां लंबे समय से ओबीसी आरक्षण में बंटवारे की मांग उठाती रही हैं. यूपी, बिहार और झारखंड जैसे राज्य में यादव और कुर्मी का ओबीसी समुदाय पर दबदबा है।जाति जनगणना के साथ ही ओबीसी समूहों के बीच ही एक नई बहस छिड़ सकती है. यूपी और बिहार जैसे राज्यों में मौर्य और कुशवाह जैसे पिछड़ी जाति समूह ने ओबीसी की प्रमुख यादवों को तेजी से चुनौती दे रहे हैं.

1000515929

इसकी वजह यह है कि जाति जनगणना से ये आंकड़ा भी सामने आएगा कि मंडल आयोग लागू होने के बाद ओबीसी आरक्षण का लाभ सबसे ज्यादा किसे मिला है और किसे नहीं।ओबीसी आरक्षण का फायदा मिलने का जिन पिछड़ी जातियों पर आरोप लगता है, उनमें प्रमुख रूप से कुर्मी,यादव, मौर्य, जाट, गुर्जर, लोध, माली जैसी जातियां हैं. वहीं, मल्लाह, निषाद, केवट, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैकवार, तुरैहा, बाथम,भर, राजभर, मांझी, धीवर, प्रजापति, कुम्हार, मछुवा, बंजारा, घोसी, नोनिया जैसी सैकड़ों जातियां हैं, जिनको ओबीसी के आरक्षण का लाभ यादव और कुर्मी की तरह नहीं मिला।

Comments
Sharing Is Caring:

Related post