मनरेगा के तहत क्या अब 150 दिन मिलेंगे रोजगार?कई बड़े निर्णय लेने जा रही है मोदी सरकार!
कैबिनेट ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005 में अहम बदलाव करने का फैसला किया है. इसका ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंद वर्करों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने में काफी मदद मिलने की उम्मीद है.बीते दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में तय किया गया कि मनरेगा कानून के तहत एक वित्तीय वर्ष में मौजूदा कम से कम 100 दिनों की रोजगार की गारंटी को बढ़ाकर कम से कम 125 दिन किया जायेगा. कैबिनेट ने मौजूदा कानून में संशोधन करने के लिए नया बिल लाने का फैसला किया है. जिसे संसद के शीत सत्र के दौरान पेश किया जा सकता है.महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) एक मांग-आधारित मजदूरी रोजगार योजना है. जहिर है, नए मनरेगा बिल को संसद की मंजरी मिलने के बाद ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर और बेहतर होंगे.

मनरेगा के तहत रोजगार की गारंटी बढ़ाने और न्यूनतम मजदूरी दर में बढ़ोतरी की मांग संसद में कई बार उठी है. इसी साल बजट सत्र के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने 18 मार्च, 2025 को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के लिए सरकारी फंड बढ़ाने और ग्रामीण मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी दर 400 रुपये करने की मांग की थी.कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने राज्यसभा में शून्य काल के दौरान सरकार से ये मांग रखते हुए कहा था, “ग्रामीण इलाकों में मजदूरी के संकट को देखते हुए मनरेगा के तहत ग्रामीण मजदूरों को साल में 100 दिन की जगह 150 दिन का रोजगार मिलना चाहिए; मजदूरों को वेतन भुगतान में देरी हो रही है, उन्हें समय पर मजदूरी मिले; और आधार कार्ड पर आधारित भुगतान व्यवस्था की अनिवार्यता खत्म की जाए”.ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 के बाद मोदी सरकार के 11 साल के कार्यकाल के दौरान मनरेगा के लिए जारी फंड्स में लगातार बढ़ोतरी की गयी है. ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक, “वित्त वर्ष 2025-26 में मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, जो योजना की शुरुआत के बाद से अब तक का सबसे अधिक आवंटन है. वित्त वर्ष 2013-14 में, मनरेगा के लिए बजट आवंटन 33,000 करोड़ रुपये था, जो वित्त वर्ष 2025-26 में बढ़कर 86,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.हालांकि मनरेगा के तहत फंड्स जारी करने में हो रही देरी का सवाल भी उठता रहा है, और इसपर राजनीति भी जारी है. इस हफ्ते तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने मनरेगा फंड्स पश्चिम बंगाल को जारी करने में हो रही देरी को लेकर संसद परिसर में कई बार प्रदर्शन किया. तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने लोकसभा और राज्य सभा में स्थगन प्रस्ताव के लिए नोटिस देकर दोनों सदनों की कार्यवाही को रोककर इस मुद्दे पर चर्चा कराने की भी मांग कई बार की। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कीर्ति आज़ाद ने कहा, “पश्चिम बंगाल सरकार को केंद्र सरकार ने अलग-अलग केंद्रीय योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जरूरी करीब दो लाख करोड़ रुपये की राशि जारी नहीं की है. इसमें मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए 43,000 करोड़ रुपये की राशि शामिल है. इस मसले पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी फैसला दे चुके हैं लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार पैसे रिलीज़ नहीं कर रही है जो पश्चिम बंगाल के लोगों का हक़ है।उधर केंद्र सरकार का कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के प्रभावी क्रियान्वयन में बुरी तरह विफल रही है. 2019 से 2022 के बीच केंद्र की टीमों ने पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में जांच की, जिसमें मनरेगा के कार्यों में भारी अनियमितताएं पाई गईं. इनमें कार्यस्थल पर वास्तविक कार्य न होना, नियम विरुद्ध कामों को हिस्सों में तोड़ना, धन की हेराफेरी जैसी गंभीर बातें उजागर हुईं. इसी के चलते ग्रामीण विकास मंत्रालय को मनरेगा अधिनियम की धारा 27 के तहत 09 मार्च, 2022 से पश्चिम बंगाल का फंड रिलीज़ करना रोकना पड़ा है।
