दलितों की ऐसी स्थिति के लिए कौन है जिम्मेदार,क्यों नहीं बन पाए मजबूत?
जब भी दलित उत्पीड़न और गरीबी की बात उठती है हम फौरन यूपी बिहार की सोचने लगते हैं. हम यह मान कर चलते हैं कि दलितों का उत्पीड़न सिर्फ इन्हीं दोनों राज्यों में होता है. पंजाब-हरियाणा को हम क्लीन चिट दे देते हैं. बंगाल और महाराष्ट्र से चूंकि रेनेसां शुरू हुआ था इसलिए उन्हें भी क्लीन चिट. शेष बचे दक्षिण के राज्य तो वहां राम स्वामी नायकर पेरियार ने 1935 से ही ब्राह्मणों, संस्कृत और उत्तर के विरुद्ध आंदोलन चला कर इन प्रांतों को इस कलंक से बाहर कर लिया था. नार्थ ईस्ट का समाज सनातनी जाति संरचना से बाहर है अतः वहां जाति के अस्तित्त्व को खाद-पानी कभी मिला ही नहीं सो जाति पनपती कहां से! लेकिन जब हरियाणा के एडीजी रैंक का एक अधिकारी दलित उत्पीड़न से आहत हो कर खुदकुशी जैसा कदम उठा लेता है, तब लगता है अरे! दलितों के उत्पीड़न के मामले में सभी राज्यों में एक जैसा माहौल है।

हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों में दलित यूपी-बिहार की तुलना में समृद्ध हैं और उनकी स्थिति दयनीय नहीं है. परंतु जब जातीय उत्पीड़न की बात आती है तो पता चलता है कि दलितों के समृद्ध और अपेक्षाकृत मुखर होने के बावजूद उनकी स्थिति कमोबेश वैसी है जैसी कि यूपी-बिहार के बारे में कही जाती है. यूपी में तो मायावती के चार बार सत्ता में रहने की वजह से दलितों के अंदर आत्म विश्वास भी है. बिहार में भी एक बार दलित मुख्यमंत्री राम सुंदर दास रह चुके हैं. किंतु हरियाणा और पंजाब में जाट समुदाय बहुत ताकतवर है. वह भले दलितों के साथ अपने गोत (गोत्र) समान बताये पर अंदर ही अंदर उसकी मानसिकता किसी सामंती शासक की तरह है. वह अपने समुदाय के इतर अन्य समुदायों को दोयम दरजे का मानता है. भले इन राज्यों में छुआछूत कब का खत्म हो चुका हो लेकिन भेद-भाव भीषण है।मालूम हो कि हरियाणा में 21 प्रतिशत दलित आबादी है. 90 सीटों वाली विधान सभा में उनके लिए 17 सीटें आरक्षित हैं. 35 सीटों पर दलित निर्णायक स्थिति में हैं. इसके बावजूद हरियाणा में दलितों का कोई बड़ा चेहरा नहीं उभर सका. 1966 में हरियाणा प्रदेश पंजाब सूबे से अलग हो कर बना था. तब से कई मुख्यमंत्री आये-गए लेकिन इनमें से कोई भी दलित चेहरे को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. ज्यादातर मुख्यमंत्री जाट समाज से आए. भजन लाल विश्नोई समाज से थे. पहले मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा ब्राह्मण थे. दलित चेहरे के रूप में कुमारी शैलजा जरूर कांग्रेस पार्टी में एक बड़ा चेहरा हैं, पर जब भी उनके मुख्यमंत्री बनने की बात उठी फोरन जाट नेता मतभेद भूल कर एक हो जाते थे. आठ प्रतिशत आबादी वाले पंजाबी समाज के मनोहर लाल खट्टर दो बार मुख्यमंत्री रहे. इस समय नायब सिंह मुख्यमंत्री हैं, जिनका यह दूसरा कार्यकाल है. वे सैनी समाज से हैं।ऐसे ही डेरों में एक राम रहीम का डेरा है. इसमें हिंदू व सिख दलित समुदाय खूब जाता है. यूँ भी किसी अधिकारी का भ्रष्ट होना एक अलग बात है किंतु उसका जातीय उत्पीड़न एक अलग बात है. अगर कोई भ्रष्ट है तो उसकी जांच करो, लेकिन उसके साथ उसकी जाति के आधार पर भेद भेदभाव करना अमानुषिक है।
