विजय सिन्हा और तेजस्वी की बढ़ने वाली है मुश्किलें,इस मामले में कारवाई होनी तय

बिहार में SIR राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है, जब राज्य के दो बड़े नेताओं के नाम दो-दो एपिक नंबर का मामला सामने आया. पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इसके बाद सत्ता पक्ष के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा का नाम आया. चुनाव आयोग दोनों नेताओं को नोटिस जारी कर चुका है.आयोग दोनों मामले में तेजी से जांच कर रहा है, इसके साथ ही दोनों नेताओं को नोटिस जारी कर जानकारी मांगी है कि ऐसा किस कारण से ऐसा हुआ है. जानकार बताते हैं कि इस इसमें नेताओं की गलती सामने आती है तो दोनों को सजा हो सकती है. हालांकि काफी हद तक विजय सिन्हा इससे बच सकते हैं।चुनाव मामलों के जानकार और एडीआर बिहार के संयोजक राजीव कुमार ने इस मामले में गहनता से अध्यन किया.

उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग एक व्यक्ति को एक ही एपिक नंबर जारी करता है. अगर दो जगह मतदाता सूची में नाम है और दो एपिक नंबर है तो यह गड़बड़ी के श्रेणी में आएगा. ऐसे में सजा हो सकती है।आयोग के मुताबिक फॉर्म 6 के तहत नाम जोड़ने की प्रक्रिया होती है. फॉर्म 7 और फॉर्म 8 के तहत शुद्धिकरण और नाम हटाने की प्रक्रिया होती है. तेजस्वी यादव के मामले में आयोग स्पष्ट कर पाएगा की गड़बड़ी किस स्तर पर हुई है. आयोग को कोर्ट में साबित करना होगा. अगर मतदाता की गलती हुई तो उन्हें एक साल की सजा और जुर्माना हो सकता है.उपमुख्यमंत्री विजय सिंन्हा का भी नाम दो विधानसभा में दर्ज है. आयोग ने उपमुख्यमंत्री से जवाब मांगा है. विजय सिन्हा ने बताया गया है कि ‘उन्होंने पहले ही पूर्व विधानसभा क्षेत्र से नाम हटाने का आवेदन दिया था.’ अगर यह सूचना सही है तो उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी, लेकिन अगर गलत है तो एक साल की सजा और जुर्माना हो सकता है.अगर दोनों नेताओं को सजा होती है तो क्या इस कारण से उनकी सदस्यता भी जा सकती है? इसको लेकर पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और कानून मामले के जानकार दीनू कुमार से बातचीत की गयी।संविधान के अनुच्छेद 102 में अयोग्यता का प्रावधान है. जानकार बताते हैं कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में वर्णित है कि अगर किसी सांसद और विधायक को दो साल या उससे ज्यादा सजा होती है तो इस परिस्थिति में उनकी सदस्यता चली जाती है. इस कानून के तहत 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने के लिए आयोग्य घोषित कर दिया जाता है. हालांकि सांसद और विधायक को दोषी ठहराए जाने के 3 महीने तक अपील करने का समय दिया जाता है. जिसमें अपना पक्ष पेश करते हुए खुद को निर्दोष साबित करना होता है. इसके बाद सदस्यता बहाल कर दी जाती है।यह फैसला लोकसभा में अध्यक्ष और विधानसभा में सभापति सुनाते हैं. इसका संविधान के 10वीं सूची में प्रावधान है. इसके तहत सभापति और अध्यक्ष को इसका अधिकार दिया गया है. हालांकि अगर मामला कोर्ट में चल रहा है तो किसी भी फैसले से पहले कोर्ट के फैसले का इंतजार करना अनिवार्य है।