लालू परिवार में होगा बिखराव,तेज प्रताप बढ़ाएंगे सबकी मुश्किलें

कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी घराने मुलायम सिंह यादव के परिवार में फूट पड़ गई थी. सियासी बंटवारे के बाद 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार हुई थी. अब 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में भी सियासी बंटवारे की पटकथा लिखी जा रही है. बिहार की चुनावी पिच पर लालू यादव के परिवार में घमासान मचा हुआ है. परिवार से अलग होने के बाद तेजप्रताप यादव लगातार सियासी जमीन मजबूत करने में लगे हैं, जिससे तेजस्वी यादव का चुनावी गणित गड़बड़ा सकता है.2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच 12000 वोटों का अंतर था. ऐसे में लालू यादव और तेजस्वी यादव को लगता है कि इस बार सत्ता में आने की प्रबल संभावना है लेकिन जिस तरह से तेजप्रताप यादव खुलकर मैदान में उतर आए हैं, उससे आरजेडी और लालू परिवार की चिंता बढ़ गई है।बिहार की सियासत के सबसे माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव 2025 चुनाव से ठीक पहले मुश्किल में घिरते दिख रहे हैं. बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने ‘बगावत का झंडा’ उठा लिया है. पार्टी से बेदखल होने के बाद शांत रहने के बजाय उन्होंने अघोषित तौर पर भाई तेजस्वी के खिलाफ जंग छेड़ दी है. जिस वजह से पार्टी और परिवार में बेचैनी है।तेज प्रताप यादव राष्ट्रीय जनता दल के निलंबित विधायक हैं. उन्होंने 2020 में समस्तीपुर की हसनपुर सीट से जीत हासिल की थी लेकिन अब फिर से अपनी पुरानी सीट महुआ से लड़ने का ऐलान कर दिया है. उन्होंने कहा कि हर हाल में वह महुआ से मैदान में उतरेंगे. इस सीट से फिलहाल आरजेडी के मुकेश रोशन विधायक हैं, जोकि तेजस्वी के करीबी माने जाते हैं.तेजप्रताप यादव फिलहाल प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ले रहे हैं. उन्होंने पार्टी बनाने से भले ही इंकार कर दिया हो लेकिन ‘टीम तेजप्रताप यादव’ के नाम से मंच बनाकर बिहार के अलग-अलग इलाकों में घूमना शुरू कर दिया है. उनके साथ बड़ी तादाद में युवाओं की भीड़ नजर आती है.

इस दौरान तेजप्रताप ने तेजस्वी यादव और कांग्रेस से भी गठबंधन में आने की अपील कर दी है. हालांकि तेजप्रताप की सियासी गतिविधियों पर तेजस्वी ने फिलहाल चुप्पी साथ रखी है. वहीं राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं को तेजप्रताप यादव पर बोलने से मना किया गया है. ऐसा लगता है कि लालू के बड़े लाल के तरकश में अभी कई तीर हैं, जिसका वह समय आने पर इस्तेमाल कर सकते हैं.वैसे तो लालू यादव खुद आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन पार्टी के तमाम फैसले तेजस्वी यादव ही लेते हैं. न केवल वह आरजेडी के सीएम चेहरा हैं, बल्कि अघोषित रूप से लालू के राजनीतिक उत्तराधिकारी भी हैं. गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती है कि लालू उनको औपचारिक तौर पर पार्टी की कमान सौंप सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होता है. लगातार 13वीं बार लालू राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं. वहीं राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तेजस्वी के साथ-साथ मीसा भारती और रोहिणी आचार्य को भी जगह दी गई है।आपको बताएं कि लालू प्रसाद यादव ने 1997 में जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था. उस समय वह सत्ता में थे. 2005 तक बिहार में आरजेडी की सरकार रही. हालांकि उसके बाद पार्टी कमजोर होती गई. 2010 चुनाव में सबसे बुरा प्रदर्शन रहा. वहीं 2015 में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन के बाद एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी (81 सीट) बनकर उभरी, 2020 में भी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी।