मुसलमानों के अंदर में डर है!जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने ये क्या कह दिया?

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा है और मुसलमानों में डर है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कोई भी भारत में धर्मनिरपेक्षता को खत्म नहीं कर सकता.वह 1948 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान शहीद हुए भारतीय सेना के सर्वोच्च अधिकारी ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के जीवन पर आधारित एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे. अब्दुल्ला ने पुस्तक विमोचन के अवसर पर कहा, ‘भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा है, मुसलमानों में भय है, लेकिन यह भय इसलिए है क्योंकि बड़ा समाज सांप्रदायिक विचारों वाला नहीं है, बल्कि दबा हुआ है.’ लेकिन मुझे नहीं लगता कि भारत इससे बाहर नहीं निकल पाएगा. हालांकि वह दिन जरूर आएगा.’

उन्होंने कहा आगे कहा, ‘कोई भी हमारी धर्मनिरपेक्षता को खत्म नहीं कर सकता. मुहम्मद अली जिन्ना चाहते थे कि कश्मीर पाकिस्तान में शामिल हो जाए, लेकिन शेख अब्दुल्ला ने गांधी के भारत को चुना.’उन्होंने कहा, ‘जिन्ना का मानना था कि मुसलमान मूर्ख हैं, कश्मीर हमारे साथ आएगा. जब हमलावर आए तो राजा के पास बड़ी सेना नहीं थी. हिंदू, मुस्लिम, सिख, सभी कश्मीरी उनका सामना करने के लिए एक साथ खड़े हो गए.’ उन्होंने कहा, ‘देखिए भारत के साथ हाथ मिलाने पर उन्हें क्या मिला. हम उस जवान को क्या कहेंगे जो इस सदी में पैदा हुआ है उस समय क्या स्थिति थी.’उन्होंने कहा, ‘हमने किस देश से हाथ मिलाया, उन्हें हमसे कोई प्यार नहीं है. आज एक निर्वाचित सरकार है, लेकिन किसके पास शक्ति है, लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास.’ उन्होंने उन्हें दिल्ली द्वारा नियुक्त ‘वायसराय’ कहा.अब्दुल्ला ने कहा, ‘जब जिन्ना कश्मीर आए तो उन्होंने शेख अब्दुल्ला से कहा कि यह आपके लिए जगह नहीं है, वे आपके साथ न्याय नहीं करेंगे. शेख साहब ने भरी सभा में उनसे कहा कि पाकिस्तान का रास्ता हमारा नहीं है. भारत हमारा रास्ता है, जो गांधी का राष्ट्र है.अब्दुल्ला बोले, ‘उन्होंने मुझे कहा बताइए पंडित कहां जाएंगे? सिख, बौद्ध कहां जाएंगे? क्या वहां आपके लिए जगह है या नहीं? हां, हम इसे रखेंगे. बिल्कुल. आज, (पाकिस्तान में) स्थिति देखिए.’ उन्होंने कहा कि यह बात उन लोगों को बताई जानी चाहिए जो कहते हैं कि ‘मुसलमानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता’. पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी जो ब्रिगेडियर उस्मान के रिश्तेदार भी हैं ने कहा कि उनके बलिदान का भारत के इतिहास में एक सम्माननीय स्थान है.अंसारी ने कहा, ‘1948 के युद्ध के दौरान उनके असाधारण नेतृत्व राष्ट्र के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता और उनके द्वारा दिया गया सर्वोच्च बलिदान हमारे इतिहास में एक सम्मानित स्थान रखता है.’ उन्होंने कहा कि यह पुस्तक वर्तमान पीढ़ियों के लिए उन लोगों की वीरता का एक सामयिक यादगार पत्र है जिन्होंने हमारे इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण में हमारे देश की अखंडता की सफलतापूर्वक रक्षा की. उन्होंने कहा, ‘इतिहासकार रामचंद्र गुहा के शब्दों में यह समावेशी धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक भी है. इसे बार-बार दोहराया जाना चाहिए.’राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि ब्रिगेडियर उस्मान के पास एक विकल्प था, और उन्होंने विभाजन के समय भारत में रहने का विकल्प चुना. उन्होंने कहा, ‘हम पुरानी यादों में जी रहे हैं. ब्रिगेडियर उस्मान आपको भारत की वो पुरानी यादें ताजा करवाते हैं जो हमने शायद खो दी हैं.’