तालिबान ने पाकिस्तान को दी खुली चेतावनी,जवाबी कार्रवाई करने का कर दिया ऐलान

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पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. इस बीच तालिबान के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने पाकिस्तान को कायर दुश्मन कहा और चेतावनी दी. उन्होंने कहा, हमने रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वो ऐसी एडवांस तकनीकी हथियारों का विकास करें, जो हमारे पड़ोसियों और दुनिया की नींद हराम कर दें.पाकिस्तान को संबोधित करते हुए, तालिबान के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने कहा कि वो कायर दुश्मन से कह रहे हैं कि वो अफगानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर न करे, सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए बेगुनाह महिलाओं, बच्चों और अफगानों को न मारे और अफगान लोगों के सब्र का इम्तिहान न ले.मुल्ला बरादर ने आगे कहा कि किसी भी हमलावर को यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान के पास भी याददाश्त होती है और वो अपने जरूरी हिसाब-किताब खुद करते हैं.

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डिप्टी प्राइम मिनिस्टर ने बताया कि अफगानिस्तान सभी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहता है, लेकिन अगर कोई हमला करता है तो उसका जवाब कड़ा होगा.दोनों के बीच बढ़ा तनावपाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा है. पिछले महीनों में पाकिस्तान ने टीटीपी को लेकर अफगानिस्तान पर हमला किया था. इसी के बाद दोनों ने एक-दूसरे पर हमला किया और लगातार दोनों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है.मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक हैं. बताया जाता है कि वो तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के भरोसेमंद कमांडरों में से एक थे. उन्हें 2010 में पाकिस्तान के कराची शहर में सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार किया था और 2018 में रिहा किया गया था.मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, जिन्हें मुल्ला बरादर के नाम से जाना जाता है, 1994 में तालिबान आंदोलन के सह-संस्थापक हैं. बरादर को मुल्ला उमर का भरोसेमंद कमांडर माना जाता है और कहा जाता है कि उनकी शादी उमर की बहन से हुई है. बरादर ने एक सैन्य रणनीतिकार और कमांडर के रूप में पहचान बनाई.उन्होंने अफगानिस्तान में लगभग सभी बड़े युद्धों में अहम जिम्मेदारियां निभाईं और पश्चिमी क्षेत्र और काबुल में तालिबान की संरचना के शीर्ष कमांडरों में रहे.कई युद्ध में रहे शामिलइंटरपोल के अनुसार, बरादर का जन्म 1968 में अफगानिस्तान के उरुजगान प्रांत के देहरावूद जिले के वीटमक गांव में हुआ था. वो दुर्रानी जनजाति की पोपलजई शाखा से ताल्लुक रखते हैं, जो पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई की जनजाति भी है. उन्होंने 1980 के दशक में सोवियत के खिलाफ अफगान मुजाहिदीन के साथ लड़ाई लड़ी. 1992 में रूसियों के हटने और देश में गृहयुद्ध भड़कने के बाद, बरादर ने मुल्ला उमर के साथ कंधार में एक मदरसा स्थापित किया और बाद में दोनों ने मिलकर तालिबान आंदोलन की नींव रखी.

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