भारत के दिए जख्म को नहीं भर पाएगा पाकिस्तान,चौपट हुआ देश की अर्थव्यवस्था

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से गंभीर संकट का सामना कर रही है. 9 मई को IMF से पाकिस्तान को 2.4 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज को मंजूरी दे दी गई. ये मंजूरी पाकिस्तान को तब मिली जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चल रहा था. लेकिन क्या आप जानते हैं IMF की भीख से भी पाकिस्तान की इकोनॉमी नहीं सुधर सकती है।पाकिस्तान की विकास दर में गिरावट का मुख्य कारण कम बचत और प्रोडक्टिविटी को दिखाता है. क्योंकि 1980 में, पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति जीडीपी कई क्षेत्रों की तुलना में अधिक थी, लेकिन उसके बाद से इसके जीवन स्तर में गिरावट आई है. दशकों में पाकिस्तान का घटता विकास इसके गरीबी को साफ तौर से दिखाता है।हाल ही में हुई बढ़ोतरी के बावजूद भी, पाकिस्तान की आर्थिक संभावनाओं पर चुनौतियां हावी हैं. पिछले दशकों में दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के उभरते बाजार और विकासशील देशों (EMDC) की तुलना में पाकिस्तान के जीवन स्तर में गिरावट आई है.

जो उनके कमजोर नीतियों को दिखाता है. फिजिकल पॉलिसी की कमजोरियों और बार-बार मंदी ने बाहरी फाइनेंसिंग की ज़रूरतों को बढ़ा दिया है और बफ़र्स को कम कर दिया है. इसलिए पाकिस्तान को ठोस नीतियों और सुधारों को मजबूत और बनाए रखने की ज़रूरत है।पाकिस्तान की इकोनॉमी में बढ़ती अस्थिरता और चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं. सब्सिडी और टैक्स छूट के कारण अर्थव्यवस्था खराब बनी हुई है, जिसने टैक्स के आधार को कमजोर किया है. समय के साथ आर्थिक अस्थिरता बढ़ती ही गई है. इसके बजाय, पाकिस्तान की स्थायी क्षमता से घरेलू मांग में बढ़ोतरी हुई, जिसके कारण मुद्रास्फीति और भंडार में कमी आई।पिछले दो दशकों में, वैश्विक व्यापार में पाकिस्तान काफी कमजोर रहा है, जिससे उसका आर्थिक विकास सीमित हो गया है. नौ अन्य क्षेत्रीय समकक्षों की तुलना में, 2000 के बाद से देश की निर्यात बढ़ोतरी दूसरे स्थान पर रही है, जबकि 2010 के दशक के दौरान दुनिया को बिक्री में खास तौर पर स्थिरता रही है. लगातार व्यापार प्रतिबंधों – जैसे कि टैरिफ, विनिमय नियंत्रण और गैर-टैरिफ बाधाओं – ने पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक व्यापार-प्रतिबंधित देशों में से एक बना दिया है।