ओबीसी को खुश करने के लिए NDA ने चली बड़ी चाल, उपराष्ट्रपति पद के लिए एक साथ कई निशाना

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित कर एक रणनीतिक दांव चला है. यह फैसला केवल एक नाम की घोषणा नहीं, बल्कि ओबीसी वोट बैंक और दक्षिण भारत की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की स्पष्ट कोशिश है.तमिलनाडु से आने वाले राधाकृष्णन ओबीसी समुदाय से संबंध रखते हैं और लंबे समय से आरएसएस (RSS) से जुड़े रहे हैं. भाजपा नेतृत्व ने इस चयन से यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व दोनों को प्राथमिकता दे रही है.दक्षिण भारत की राजनीति में भाजपा की अब तक सीमित उपस्थिति रही है.

ऐसे में तमिलनाडु के एक अनुभवी नेता को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह सिर्फ उत्तर भारत की पार्टी नहीं है, बल्कि वह समग्र भारत की प्रतिनिधि बनना चाहती है.कांग्रेस और विपक्षी दलों ने हाल के वर्षों में ओबीसी जनगणना और सामाजिक न्याय को लेकर मुखर भूमिका निभाई है. ऐसे में भाजपा ने राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर सीधा मुकाबला पेश कर दिया है. अब भाजपा विपक्ष से यह सवाल पूछेगी: “क्या वे ओबीसी सम्मान के नाम पर एनडीए के ओबीसी उम्मीदवार का समर्थन करेंगे?”संसद में एनडीए के पास लगभग 422 सांसदों का समर्थन है, जो कि 391 के जरूरी बहुमत से काफी अधिक है. इसलिए चुनाव में जीत लगभग तय है, लेकिन भाजपा इसे राजनीतिक रूप से भी भुनाना चाहती है — खासकर उन राज्यों में जहां पार्टी को अभी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है, जैसे तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश.विपक्षी INDIA गठबंधन अभी अपने उम्मीदवार की घोषणा से दूर है, लेकिन जानकारों का मानना है कि वे भी किसी ओबीसी या अल्पसंख्यक चेहरे को मैदान में उतार सकते हैं, जिससे मुकाबला आंकड़ों से आगे बढ़कर सामाजिक संतुलन की लड़ाई बन जाए।एनडीए ने उपराष्ट्रपति चुनाव को सामाजिक प्रतिनिधित्व और क्षेत्रीय संतुलन का मंच बना दिया है. अब निगाहें विपक्ष पर टिकी हैं — क्या वे इस रणनीतिक दांव का जवाब दे पाएंगे?