सरकारी डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस पर ममता बनर्जी ने लगाई लगाम,डॉक्टरों के लिए जारी हुआ गाइडलाइंस

 सरकारी डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस पर ममता बनर्जी ने लगाई लगाम,डॉक्टरों के लिए जारी हुआ गाइडलाइंस
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चेतावनी के बाद स्वास्थ्य भवन ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए गाइडलाइंस जारी की है. इसमें सरकारी डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस पर लगाम लगाने की बात कही गयी है. इसके साथ हीसरकारी मेडिकल कॉलेज में पद के अनुसार कोई डॉक्टर कितने समय तक अस्पताल में रहेगा? उस समय उनका कार्य क्या होगा? एक शिक्षक-चिकित्सक दिन के कितने समय मेडिकल छात्रों को पढ़ाएगा? स्वास्थ्य सचिव नारायण स्वरूप निगम ने दिशा-निर्देश जारी कर विभागाध्यक्ष, यूनिट प्रमुख और अन्य डॉक्टरों की जिम्मेदारियां तय कर दी है.गुरुवार को नबान्न में स्वास्थ्य विभाग के काम पर असंतोष व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने आलोचना के लहजे में कहा, ‘क्या स्वास्थ्य भवन काम करता है या यह अफवाह है?’

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इसके बाद स्वास्थ्य सचिव द्वारा 24 घंटे के अंदर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का अस्पताल में रहने के दौरान ड्यूटी रोस्टर जारी किया. स्वास्थ्य विभाग की ओर मेडिकल कॉलेज के शिक्षक डॉक्टरों के लिए गाइडलाइंस तय की गई.मेडिकल कॉलेज में कार्यरत डॉक्टरों के लिए गाइडलाइंस जारीस्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी निर्देश में कहा गया है कि रात्रि ड्यूटी के समय वरिष्ठ संकाय की उपस्थिति अब से से अनिवार्य है.सहायक प्रोफेसरों को आपातकालीन, ऑन-कॉल, वार्ड कर्तव्यों के साथ-साथ शिक्षक-चिकित्सक की भूमिका भी निभानी होती है. प्रत्येक इकाई के इन-डिवीजन, आपातकालीन वार्ड में सुबह और शाम का दौरा अनिवार्य हैमरीज भर्ती के दिन संबंधित यूनिट के वरिष्ठ डॉक्टरों को दोपहर 2 बजे तक ओपीडी में रहना होगा. प्रत्येक इकाई से कम से कम एक डॉक्टर को मरीज के परिवार से दो घंटे के लिए मिलना चाहिए.विभागाध्यक्ष अपने अलावा अन्य इकाइयों के मरीजों की निगरानी करेंगे. अब से एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायो केमिस्ट्री के डॉक्टरों को भी जनरल ओपीडी करनी होगी.सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे के बीच सरकारी कॉलेज में काम करने वाले डॉक्टर अब निजी प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगे. एक डॉक्टर एक ही दिन में तीन स्थानों पर अपने स्वास्थ्य साथी की सर्जरी कैसे करता है? मुख्यमंत्री ने उठाया सवाल. यह निर्देश उसी के मद्देनजर माना जा रहा हैबीएचटी में यह उल्लेख होना चाहिए कि मरीज को क्या उपचार मिला? स्वास्थ्य विभाग ने कर्तव्य में लापरवाही साबित करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दीयदि आवश्यक हो, तो राज्य चिकित्सा परिषद या एनएमसी सरकारी डॉक्टर की लापरवाही को स्वास्थ्य भवन के ध्यान में लाएगी.सरकारी अस्पतालों में मृत मरीजों का डेथ ऑडिट अनिवार्य कर दिया गया है. स्वास्थ्य भवन ने कहा कि लापरवाही से मरीज की मौत के लिए यूनिट हेड जिम्मेदार होगा.जूनियर डॉक्टरों को शाम छह बजे तक अस्पताल में उपस्थित रहना अनिवार्य है. पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, हेमेटोलॉजी, रेडियोलॉजी के डॉक्टर हर समय अस्पताल में मौजूद रहना होगा.अस्पताल पहुंचने के बाद मरीज को उसकी शारीरिक स्थिति के अनुसार ग्रीन, येलो, रेड जोन में भेजा जाएगा. मेडिकल ऑफिसर के नेतृत्व में जूनियर डॉक्टर तय करेंगे कि किस मरीज को किस जोन में भेजा जायेगा. किसी भी मरीज को रेड जोन में रेफर किया जाएगा.रेड जोन में 10 बिस्तरों वाला चिकित्सा बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा. येलो जोन में ट्रॉली, मोबाइल बेड पर मरीज का इलाज होगा.इमरजेंसी वार्ड में ही कंप्यूटर से पता चल जायेगा कि किस वार्ड में कितने बेड खाली हैं. अस्पताल में सभी स्वास्थ्य कर्मियों की बायोमेट्रिक उपस्थिति होगी. अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक आपातकालीन प्रशासन के प्रभारी होंगे.

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