कुशवाहा समाज चुनाव में निभाएगा अग्रणी भूमिका,NDA या महागठबंधन किसके साथ जाएगा ये समाज?
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक यादव, कुर्मी, मुसलमान, राजपूत और दलित वोट बैंक की चर्चा खूब होती है, लेकिन कुशवाहा (कोयरी) समाज का राजनीतिक महत्व भी किसी से कम नहीं है. इतिहास गवाह है कि जब-जब कुशवाहा वोटर एकजुटता दिखाई, बिहार में सत्ता की तस्वीर बदल गई. 90 के दशक में लालू यादव के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण के साथ कुशवाहा वोट बैंक भी था. नीतीश कुमार भी इसे अपना पारंपरिक आधार मानते रहे हैं. इस बार एनडीए, महागठबंधन और उपेंद्र कुशवाहा जैसे क्षेत्रीय क्षत्रप इस समाज के वोट पर दावा ठोक रहे हैं.इस बीच बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, एनडीए, महागठबंधन और छोटे दल सभी इस वोट बैंक को साधने की कोशिशों में जुट गए हैं. सवाल यही है कि आखिर 6 से 7 प्रतिशत वोट किसके खाते में जाएगा।

बिहार की कुल आबादी में कुशवाहा समाज की हिस्सेदारी 6 से 7 फीसदी मानी जाती है.243 विधानसभा सीटों में से करीब 35 से 40 सीटों पर इनकी निर्णायक पकड़ है.पटना, नालंदा, भोजपुर, समस्तीपुर, वैशाली, सीवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, दरभंगा, जहानाबाद और गया जिलों में इनकी अच्छी खासी संख्या है।लालू प्रसाद यादव का शासनकाल (1990–2005) के दौर में शुरुआत में यादवों के साथ रहा. इसका बड़ा हिस्सा आरजेडी को पक्ष में मतदान करता रहा.नीतीश कुमार दौर में (2005 से अब तक) कुर्मी जाति और OBC वोटों का बड़ा हिस्सा उन्होंने अपनी ओर खींच रखा है. कुशवाहा समाज का एक बड़ा वर्ग भी जेडीयू के साथ है।लोकसभा चुनाव 2014 में एनडीए के साथ रहते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने इस वोट बैंक को बीजेपी गठबंधन की ओर मोड़ने में अहम भूमिका निभाई. यही वजह है नरेंद्र मोदी सरकार में वो मंत्री भी बने. उन्होंने पार्टी का विस्तार भी किया, लोकसभा चुनाव 2019 और उसके बाद तेजी से आगे बढ़ने के चक्कर में उनका सियासी दांव कमजोर पड़ गया और पिछड़ गए. वर्तमान में राष्ट्रीय लोक मंच के नाम से बिहार विधानसभा में एक बार जोर आजमाइश में जुटे हैं।बिहार में जातीय समीकरण की राजनीति में 6-7% वोट बेहद निर्णायक साबित हो सकते हैं। 35-40 सीटों पर सीधे असर और 60 प्लस सीटों पर अप्रत्यक्ष असर डालने की भी क्षमता इस कम्युनिटी में है. यदि कुशवाहा वोट एकमुश्त किसी खेमे की ओर झुकता है तो सत्ता परिवर्तन की चाबी इस बार भी इसी समाज के हाथ में होना तय है. फिर कुशवाहा समाज का वोट बैंक बिहार की राजनीति का ‘साइलेंट गेमचेंजर’ है।साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने भी कुशवाहा वोटों के एक बड़े हिस्से को अपने पक्ष में करने में कामयाबी हासिल की थी. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी एनडीए इस समाज को साधने की रणनीति में जुटा है।
