जान लीजिए जातीय जनगणना के लिए कैसे तैयार हुई बीजेपी सरकार?छीन लिया है विपक्ष का मुद्दा

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केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अगली जनगणना में जातीय जनगणना को भी शामिल करने को हरी झंडी दे दी गई। राहुल गांधी समेत सभी विपक्षी नेताओं ने इसके लिए उनके द्वारा सरकार बनाए गए दबाव की जीत बताया तो भाजपा नेताओं ने आजादी के बाद पहली जातीय जनगणना कराने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते हुए यह कहते हुए कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को कटघरे में खड़ा किया कि अपनी सरकारों के दौरान उन्होंने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। कांग्रेस,सपा,राजद आदि विपक्षी दल इस मुद्दे को भाजपा और संघ परिवार के हिंदुत्व की काट मान रहे हैं तो भाजपा इसे प्रधानमंत्री मोदी का मास्टर स्ट्रोक बताते हुए विपक्ष से उसके सबसे धारदार मुद्दे को छीन लेने का दावा कर रही है। दरअसल, जाति जनगणना मंडल दो की शुरुआत है और यह भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए शेर की सवारी जैसा है, जिस पर चढ़ना आसान है, लेकिन उतरने पर शिकार होने का खतरा भी है। सवाल है कि जातीय जनगणना की राजनीतिक पूंजी मोदी या राहुल किसके खाते में जाएगी।केंद्र सरकार की इस घोषणा से लोग इसलिए चौंके कि जनता इंतजार कर रही थी कि 22 अप्रैल को कश्मीर में 26 से ज्यादा लोगों की जान वाले हुए आतंकवादी हमले के बाद जिस तरह सरकार में उच्च स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा था तो लोग सोच रहे थे कि मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ उठाए जाने वाले कुछ और कड़े कदमों की जानकारी मिलेगी, लेकिन जब खबर आई कि केंद्र सरकार अब जातीय जनगणना कराएगी तो पूरा विमर्श ही बदल गया।

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टीवी चैनलों में पिछले एक सप्ताह से लगातार बैठे रक्षा विशेषज्ञों पूर्व सैनिक अधिकारियों से माफी के साथ उनकी जगह राजनीतिक विश्लेषकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बिठाकर जातीय जनगणना के मुद्दे के अनेक पहलुओं पर चर्चा शुरु हो गई।जातीय जनगणना की जड़े साठ के दशक में समाजवादियों के इस नारे में हैं कि संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ। समाजवादियों ने जब यह नारा दिया तब कांग्रेस तो इसके विरोध में थी ही, तत्कालीन जनसंघ (भाजपा) और वामदल भी इसके पक्ष में नहीं थे। कांग्रेस के लिए यह नारा उसके सवर्ण अल्पसंख्यक और दलित जनाधार के माफिक नहीं था तो जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसे हिंदू समाज को जातियों में बांटने की साजिश मानता था और वामदलों के लिए जाति नहीं बल्कि वर्ग का सवाल केंद्रीय मुद्दा था। 1977 में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद समाजवादी खेमे(जिसमें लोकदल भी शामिल था) ने अपने वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मंडल आयोग का गठन किया, जिसकी रिपोर्ट 1980 में तब आई जब केंद्र में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौट आई थी।

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