संविधान के वजह से हीं एससी-एसटी समुदाय और पिछड़े लोगों को हक मिला,खूब गरजे चीफ जस्टिस बीआर गवई

 संविधान के वजह से हीं एससी-एसटी समुदाय और पिछड़े लोगों को हक मिला,खूब गरजे चीफ जस्टिस बीआर गवई
Sharing Is Caring:

भारत के मुख्य न्यायधीश बीआर गवई ने कहा है कि जिस कारण समाज का एक बड़ा तबका आज भी हाशिए पर है, उस असमानता का समाधान किए बगैर कोई भी देश खुद के लोकतांत्रिक और प्रगतिशील होने का दावा नहीं कर सकता. गवई ने जोर देकर कहा कि एक टिकाऊ विकास, लंबी समय तक समाज में स्थिरता और सामाजिक सामंजस्य के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय जरूरी है. चीफ जस्टिस ये बातें इटली के शहर मिलान में कर रहे थे. यहां “देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका: भारतीय संविधान के 75 वर्षों से प्रतिबिंब” विषय पर बोलते हुए उन्होंने ये बातें की।सीजेआई ने कहा कि बराबरी का सवाल केवल संपत्ति के बंटवारे यानी पुनर्वितरण या कल्याण का मामला नहीं है, बल्कि ये हर व्यक्ति को सम्मान के साथ जीने, अपनी पूरी मानवीय क्षमता का एहसास करने और देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में एक समान रूप से भाग लेने में सक्षम बनाने के बारे में भी है. चीफ जस्टिस ने अंतर्राष्ट्रीय वकीलों के चैंबर को धन्यवाद भी दिया जिन्होंने चीफ जस्टिस को संबोधित करने के लिए बुलाया था. चीफ जस्टिस की ये बात भी काफी गौर करने वाली थी जहां उन्होंने पिछले 75 बरस में भारतीय संविधान की इस यात्रा को काफी सराहा जिसके जरिये समाज में सामाजिक-आर्थिक बराबरी की दिशा में कदम बढ़े हैं।उन्होंने साफ किया कि शिक्षा में जिस तरह के कुछ प्रावधान संविधान ने किए, जिस कारण ऐतिहासिक तौर पर हुए अन्याय और एससी-एसटी समुदाय के अलावा सामाजिक-आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को एक हक मिला, वो अहम था.

1000537192

उन्होंने कहा, “मैंने अक्सर कहा है और मैं आज यहां फिर से दोहराता हूं कि संविधान के समावेशी नजरिये और परिवर्तन के इस दृष्टिकोण के कारण ही मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में आपके सामने खड़ा हूं. ऐतिहासिक तौर पर हाशिए वाली पृष्ठभूमि से आने के कारण, मैं उन्हीं संवैधानिक आदर्शों की उपज हूं, जो अवसरों को लोकतांत्रिक बनाने और जाति और बहिष्कार की बाधाओं को खत्म करने की मांग करते हैं.”सीजेआई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में, भारत के संविधान ने अपने नागरिकों के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय को आगे बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभाई है, और वास्तव में, इस लक्ष्य की ओर सबसे शुरुआती और सबसे महत्वपूर्ण कदम भारतीय संसद ने शुरू किया था. एक खास चीज ये भी रही कि विदेश में संबोधित करते हुए भी सीजेआई ने संसद औऱ न्यायपालिका के बीच तनाव पर भी अपनी समझ को रखा. जस्टिस गवई ने कहा कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति एक बुनियादी सवाल के इर्द-गिर्द घूमता है: संवैधानिक संशोधन किस हद तक जा सकते हैं? उन्होंने केशवानंद भारती मामले में 1973 के ऐतिहासिक फैसले का भी जिक्र किया।

Comments
Sharing Is Caring:

Related post