अमेरिकी बिल से बढ़ी भारत की चिंता,विदेश नीति के साथ जान लीजिए क्या है पूरी कहानी?

 अमेरिकी बिल से बढ़ी भारत की चिंता,विदेश नीति के साथ जान लीजिए क्या है पूरी कहानी?
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बीते कुछ दिनों से अमेरिकी बिल की चर्चा काफी चल रही है. जिसके तहत अमेरिका उन देशों पर 500 फीसदी का टैरिफ लगाएगा, रूसी तेल का इंपोर्ट कर रहे हैं. इस बिल का लाने का उद्देश्य रूसी तेल के एक्सपोर्ट को रोकना और यूक्रेन के खिलाफ रूसी वॉर प्रोग्राम को कमजोर करना है. खास बात तो ये है कि भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है. मौजूदा समय में इंडियन क्रूड ऑयल बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी 40 फीसदी से ज्यादा देखने को मिल रही है. जिसकी वजह से भारत में इस अमेरिकी बिल की चर्चा काफी हो रही है.लेकिन भारत ने भी अमेरिका को बता किया कि वो अमेरिका के इस कानून से डरने वाला नहीं है. इस बात की तस्दीक भारत में रूसी तेल के आंकड़े दे रहे हैं.

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साथ ही भारत रूस के साथ मिलकर पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा रहा है. आंकड़ों पर बात करें तो जून में भारत का रूसी तेल आयात 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया, जिससे नई दिल्ली के तेल आयात बास्केट में मास्को का निरंतर प्रभुत्व और मजबूत हो गया. टैंकर डेटा के अनुसार, जून में भारत के कुल तेल आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा 43.2 प्रतिशत था, जो बाकी तीन सप्लायर्स – पश्चिम एशियाई प्रमुख इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात – को मिलाकर भी अधिक था.यह ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका में एक विवादास्पद विधेयक को लेकर भारत में चिंताएँ सामने आई हैं, जिसमें रूस के साथ व्यापार जारी रखने वाले देशों पर 500 फीसदी टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है. भारत और चीन रूसी कच्चे तेल के टॉप इंपोर्टर हैं, और नई दिल्ली अपनी ऊर्जा सुरक्षा और विधेयक के बारे में चिंताओं को व्यक्त करने के लिए अमेरिकी सांसदों के साथ बातचीत कर रही है. वाशिंगटन में हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि ऊर्जा पर भारत की चिंताओं और हितों को रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम को “परिचित” कर दिया गया है, जो इस विधेयक के प्रमुख स्पांसर हैं. हाल ही में एबीसी न्यूज के साथ एक इंटरव्यू में ग्राहम ने कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें अमेरिकी कांग्रेस की जुलाई की छुट्टी के बाद इस विधेयक को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया था.यह अभी देखा जाना बाकी है कि क्या यह विधेयक, जिसके बारे में ग्राहम का कहना है कि यह अमेरिका को यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस को बातचीत करने के लिए मजबूर करने में सक्षम बनाएगा, अपने मौजूदा स्वरूप में कानून बन जाएगा. अगर ऐसा होता है, तो भारत को रूस से तेल आयात में कटौती करने और अन्य सप्लार्स से आयात बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिससे आयात की लागत बढ़ सकती है. इससे भारत के अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका के साथ चल रही व्यापार संधि वार्ता में भी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं. वर्तमान में, भारतीय रिफाइनर इस मामले पर प्रतीक्षा और निगरानी का दृष्टिकोण अपना रहे हैं, जबकि भारत में रूसी तेल प्रवाह को मजबूत बनाए हुए हैं.भारत अपनी कच्चे तेल की लगभग 88 प्रतिशत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर करता है, और रूस पिछले लगभग तीन वर्षों से भारत के तेल आयात का मुख्य आधार रहा है. यूक्रेन पर फरवरी 2022 के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूसी कच्चे तेल से परहेज़ करने के साथ, रूस ने इच्छुक खरीदारों को अपने तेल पर छूट देना शुरू कर दिया. भारतीय रिफाइनर इस अवसर का फ़ायदा उठाया, जिसके कारण रूस – जो पहले भारत को तेल का काफी छोटा सप्लायर था।

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