वक्फ मामले पर हुई सुनवाई,वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है, सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने रखी बातें

सुप्रीम कोर्ट में आज फिर एक बार वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है. अदालत अंतरिम आदेश जारी करने के सवाल पर सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ इस विषय को सुन रही है. कल पौने चार घंटे तक याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वकीलों ने कानून में दसियों खामियां गिनवाईं. आज सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बचाव करते दिख रहे हैं।केंद्र सरकार की ओर से एसजी मेहता ने आज दलील देने की शुरूआत कुछ यूं किया कि जिन व्यक्तियों द्वारा जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं, उनमें से कोई प्रभावित पक्ष या व्यक्ति नहीं है. संसद के पास विधायी क्षमता है या नहीं, ये सवाल ही नहीं है. यही एकमात्र आधार था जिस पर पहले किसी कानून पर रोक लगाई गई थी. मैं ये कहना चाहता हूं कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकतीं।मेहता ने कहा कि शुरुआती विधेयक में कहा गया था कि कलेक्टर फैसला करेगा. आपत्ति यह थी कि कलेक्टर अपने मामले में खुद जज होगा. इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए. इस पर सीजेआई गवई ने पूछा तो यह सिर्फ एक कागजी एंट्री होगी.

तोमेहता ने कहा कि यह एक कागजी एंट्री होगी. लेकिन अगर सरकार स्वामित्व चाहती है तो उसे टाइटल के लिए मुकदमा दायर करना होगा. अगर कोई ट्रस्ट की संपत्ति से निपट रहा है तो उसे पता होगा कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार सरकार मालिक है, ना कि वक्फ।सीजेआई गवई ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की तरफ से जो तस्वीर पेश की जा रही है, वह यह है कि एक बार कलेक्टर जांच कर ले तो संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी और एक बार जांच पूरी हो जाने पर पूरी संपत्ति सरकार के कब्जे में चली जाएगी. इसके जवाब में मेहता ने कहा कि हमें स्वामित्व के लिए टाइटल सूट करना होगा.जस्टिस मसीह ने पूछा तो जब तक कानून का सहारा नहीं लिया जाता, तब तक कब्ज़ा ऐसे ही जारी रहेगा? जवाब में एसजी ने कहा कि हां।