फ्रांस ने भी ट्रंप को दिया बड़ा झटका,कनाडा,ब्रिटेन के बाद फिलिस्तीन राष्ट्र को दे दी मान्यता
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सोमवार को कहा कि फ्रांस आधिकारिक तौर पर फिलिस्तीन राष्ट्र को मान्यता दे रहा है. यह कदम फ्रांस और सऊदी अरब की अध्यक्षता में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान उठाया गया, जिसका मकसद इजराइल-फिलिस्तीन विवाद के टू-नेशन समाधान के लिए नए स्तर पर समर्थन को बढ़ावा देना है.संयुक्त राष्ट्र महासभा हॉल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों की घोषणा पर उपस्थित 140 से अधिक नेताओं ने जोरदार तालियां बजाईं.मैक्रों ने कहा कि मिडिल ईस्ट और इजराइलियों और फिलिस्तीनियों के बीच शांति के प्रति मेरे देश की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के हिसाब से मैं आज घोषणा करता हूं कि फ्रांस फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देता है.हालांकि इस बैठक और फिलिस्तीनी राज्य की विस्तारित मान्यता का जमीनी स्तर पर कोई वास्तविक प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है, जहां इजराइल गाजा पट्टी में एक और बड़ा आक्रमण कर रहा है और कब्जे वाले पश्चिमी तट में बस्तियों का विस्तार कर रहा है.मैक्रों ने बैठक की शुरुआत में फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने की घोषणा की, जिसमें दुनिया के कई नेताओं के बोलने की उम्मीद थी. फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए बैठक को संबोधित करने की उम्मीद है, क्योंकि उन्हें और दर्जनों अन्य वरिष्ठ फिलिस्तीनी अधिकारियों को सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिकी वीजा देने से इनकार कर दिया गया था।संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि फिलिस्तीनियों के लिए राज्य का दर्जा एक अधिकार है, इनाम नहीं. ऐसा लगता है कि यह इजरायली सरकार के विरोध में था, जिसका कहना है कि राज्य का दर्जा देने से हमास को फायदा होगा, क्योंकि उसने 7 अक्टूबर को गाज़ा में दो साल पहले युद्ध शुरू करने वाले हमले को अंजाम दिया था।ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने रविवार को फिलिस्तीन राज्य को मान्यता दे दी, और फिलिस्तीनियों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कुल 10 देश ऐसा करेंगे.

193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा फिलिस्तीन को मान्यता देता है, लेकिन प्रमुख पश्चिमी देशों ने हाल तक ऐसा करने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि यह केवल इजराइल के साथ बातचीत के जरिए ही संभव है. फिलिस्तीनियों ने मान्यता की दिशा में इन कदमों का स्वागत किया है, और उम्मीद जताई है कि ये किसी दिन आज़ादी की ओर ले जाएंगे।1990 के दशक की शुरुआत में इजराइल और फिलिस्तीनियों ने अमेरिका की मध्यस्थता में शांति वार्ता शुरू की थी, लेकिन हिंसा भड़कने और पश्चिमी तट पर अपना नियंत्रण मजबूत करने के लिए इजराइल द्वारा बस्तियों के विस्तार के कारण ये प्रयास बार-बार रुकते रहे. 2009 में नेतन्याहू के सत्ता में लौटने के बाद से कोई ठोस शांति वार्ता नहीं हुई है.टू-नेशन समाधान के समर्थकों का कहना है कि फिलिस्तीनी राज्य के बिना, इजराइल को यथास्थिति, जिसमें लाखों फिलिस्तीनी समान अधिकारों के बिना सैन्य कब्जे में रहते हैं, या एक द्विराष्ट्रीय राज्य, जिसमें यहूदी बहुमत नहीं हो, उनके बीच चुनाव करना होगा।
