चीन के लिए दलाई लामा बन गए दर्द!बीजिंग भी है परेशान

 चीन के लिए दलाई लामा बन गए दर्द!बीजिंग भी है परेशान
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दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता हैं। वर्तमान 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो वर्ष 1950 से इस भूमिका में हैं। वे न केवल धार्मिक नेता हैं, बल्कि तिब्बत की स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक भी हैं। चीन और दलाई लामा के बीच विवाद की कई वजहे हैं। यह वजहें तिब्बत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों से जुड़ी हैं। आइये इसे विस्तार से जानते हैं।दलाई लामा और चीन के बीच विवाद को समझने के लिए सबसे पहले आपको तिब्बत का इतिहास जानना होगा। तिब्बत ऐतिहासिक रूप से एक स्वतंत्र क्षेत्र रहा है, लेकिन 13वीं से 20वीं सदी तक यह कभी-कभी चीन के प्रभाव में रहा। 1950 में चीन के सुप्रीम नेता माओ ज़ेडॉन्ग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर सैन्य कब्जा कर लिया और 1951 में इसे औपचारिक रूप से चीन का हिस्सा घोषित किया। बावजूद तिब्बत खुद को चीन का हिस्सा नहीं मानता।

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दलाई लामा और उनके समर्थक तिब्बत के लिए वास्तविक स्वायत्तता की मांग करते हैं, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई स्वतंत्रता शामिल है। हालांकि दलाई लामा ने 1980 के दशक से पूर्ण स्वतंत्रता के बजाय “मध्यम मार्ग”की वकालत की है, जिसमें तिब्बत को चीन के भीतर अधिक स्वायत्तता मिले। चीन इसे तिब्बत को अलग करने की साजिश मानता है और दलाई लामा को “विभाजनकारी” कहता है।दलाई लामा को वैश्विक स्तर पर शांति और मानवाधिकार के प्रतीक के रूप में सम्मान मिलता है। 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला। उनकी वैश्विक लोकप्रियता और विश्व नेताओं से मुलाकातें चीन में यह डर पैदा करती हैं कि यह तिब्बत के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत करता है। जब भारत, अमेरिका जैसा कोई देश दलाई लामा से मिलता है तो चीन इसका कड़ा विरोध जताता है और इसे अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है।चीन ने तिब्बत में कई कठोर नीतियां लागू की हैं। इनमें तिब्बती बौद्ध मठों पर नियंत्रण, तिब्बती भाषा और संस्कृति को दबाना, बड़े पैमाने पर हान चीनी आबादी को तिब्बत में बसाना आदि। दलाई लामा इन नीतियों की आलोचना करते हैं, जिसे बीजिंग “चीन विरोधी” प्रचार मानता है। तिब्बत में मानवाधिकार हनन के आरोप, जैसे धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक और प्रदर्शनकारियों पर दमन, भी विवाद को बढ़ाते हैं।दलाई लामा की उम्र (2025 में 90 वर्ष) हो जाने के कारण उनके उत्तराधिकार का सवाल महत्वपूर्ण है। तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, दलाई लामा का पुनर्जन्म होता है और नया दलाई लामा चुना जाता है। मगर चीन का कहना है कि वह अगले दलाई लामा की नियुक्ति को नियंत्रित करेगा, जैसा कि उसने पंचेन लामा के मामले में किया। यानि चीन चाहता है कि अगला दलाई लामा कोई चीनी व्यक्ति हो या चीन के प्रभाव वाला है। मगर दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी का ऐलान कर दिया है। साथ ही कहा है कि उनका उत्तराधिकारी तिब्बती परंपराओं के अनुसार चुना जाएगा और वह भारत या किसी अन्य स्वतंत्र देश में भी पुनर्जन्म ले सकते हैं। उनका यह बयान चीन के लिए चुनौती है, क्योंकि वह तिब्बत पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है।चीन दलाई लामा को तिब्बत में अपने नियंत्रण के लिए खतरा मानता है। उनकी वैश्विक अपील और तिब्बती समुदाय में प्रभाव चीन की एक-दलीय शासन व्यवस्था के लिए असहज है। इसके अलावा चीन तिब्बत को अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा मानता है और दलाई लामा की मांगों को राष्ट्रीय एकता के खिलाफ मानता है। दलाई लामा की विश्व नेताओं से मुलाकातें और तिब्बत के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय चर्चा चीन को कूटनीतिक रूप से परेशान करती है।भारत ने 1959 में ही दलाई लामा को शरण दी और धर्मशाला में उनकी निर्वासित सरकार को जगह दी। भारत दलाई लामा को धार्मिक नेता के रूप में सम्मान देता है। यह भारत-चीन संबंधों में तनाव का एक कारण रहा है। ऐसे में चीन और दलाई लामा के बीच विवाद तिब्बत की स्वायत्तता, सांस्कृतिक पहचान, और दलाई लामा की वैश्विक प्रभावशाली छवि से जुड़ा है। चीन दलाई लामा को अपने नियंत्रण और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा मानता है। जबकि दलाई लामा तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करते हैं। यह विवाद ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मतभेदों का मिश्रण है। इसलिए चीन और तिब्बत के अध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के बीच लगातार विवाद कायम है।

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