जातिगत जनगणना के सहारे राष्ट्रीय नेता बनने की कोशिश में जुटे सीएम नीतीश,बीजेपी के लिए खड़ा किया मुश्किलें
लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन बिहार की राजनीति के नज़रिये से इसका अलग ही महत्व है. बिहार में पिछले तीन लोक सभा चुनाव से बीजेपी विरोधी राजनीति की हवा निकली हुई है. इन तीनों चुनावों में बीजेपी जिस भी दल के साथ चुनाव मिलकर लड़ी है, नतीजे के लिहाज से बीजेपी विरोधी गुट का एक तरह से सफाया होते आया है.हालांकि बिहार में 2024 का लोक सभा चुनाव पिछले तीन आम चुनाव से बिल्कुल अलग होने जा है. सियासी समीकरण बदले हुए हैं. इस बार बीजेपी और बीजेपी विरोधी दोनों ही गुटों में गठबंधन का नया स्वरूप है. जातिगत सर्वेक्षण का भी प्रभाव आगामी लोक सभा चुनाव पर कम से कम बिहार में ज़रूर देखने को मिलेगा, यह भी तय है।हर दल के लिए बिहार में इस बार बदली हुई परिस्थतियाँ होंगी. बीजेपी की बात करें, तो उसके सामने बिना नीतीश कुमार के साथ बिहार की 40 लोक सभा सीटों में से सबसे ज़ियादा सीटों पर जीत हासिल करने वाली पार्टी बनने का दबाव होगा. बीजेपी बिना नीतीश के साथ के 2014 के लोक सभा चुनाव में यह कारनामा कर चुकी है, लेकिन यह तब हुआ था, जब नीतीश बीजेपी से तो अलग थे ही, आरजेडी से भी अलग थे. इस बार नीतीश की जुगल-बंदी आरजेडी के साथ है।
यहीं बिहार में बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी और चुनौती है.आरजेडी के पास 2004 के चुनाव में एक मौक़ा होगा कि वो बिहार में सबसे अधिक सीट जीतने वाली पार्टी बन सके. ऐसे भी 2019 से तुलना करें, तो आरजेडी के सामने शून्य से शीर्ष पर पहुँचने की चुनौती है और वो इसे जेडीयू के सहारे साधना चाहेगी.वहीं बिहार की राजनीति में लगातार अपना जनाधार खोते जा रही या कमज़ोर करते जा रही नीतीश की पार्टी जेडीयू के लिए यह करो या मरो का चुनाव होगा. या’नी इस चुनाव से बहुत हद तक नीतीश की राजनीति के साथ ही जेडीयू के भविष्य का भी फ़ैसला होना है।