चंद्रशेखर आजाद की बिहार चुनाव में हुई एंट्री,NDA के नेता हुए परेशान!

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तमाम पार्टियां सूबे की सियासत में सक्रिय हो गई है. सियासी दलों में दलित वोट बैंक को साधने के लिए होड़ लगी हुई है. इसी बीच सोमवार को पटना के बापू सभागार में भीम आर्मी के गठन का 10वां स्थापना दिवस समारोह मनाया गया. स्थापना दिवस समारोह के अलावे यूपी के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की ओर से आजाद समाज पार्टी का दूसरा राष्ट्रीय अधिवेशन भी पटना में बुलाया गया था.समारोह को संबोधित करते हुए चंद्रशेखर ने दलितों से एकजुट होने की अपील करते हुए कहा कि देश के बहुजन समाज को एकजुट होने का समय आ गया है. देश में कहीं भी दलितों के साथ अत्याचार होता है तो भीम आर्मी उसके खिलाफ खड़ी होती है. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करते हुए कहा कि जब तक चंद्रशेखर जिंदा है, तब तक दलितों के खिलाफ कोई भी अत्याचार होता तो वह उसके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।

चंद्रशेखर ने बिहार में मतदाता सूची के सर्वेक्षण पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह बीजेपी और चुनाव आयोग की रणनीति है. बिहार में पिछड़ों-दलितों और अल्पसंख्यकों के मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हटाने का काम चल रहा है. उनकी पार्टी इसका विरोध करती है. दिल्ली में इसको लेकर जब विपक्षी दलों की बैठक हुई थी, तब उन्होंने भी इसका विरोध किया था।बिहार की राजनीति में चंद्रशेखर की एंट्री का मतलब साफ है कि उनकी नजर दलित वोट पर है. बिहार में दलित वोटबैंक पर एनडीए, इंडिया गठबंधन, बीएसपी, लोजपा (रामविलास), रालोजपा और हम पार्टी अपना दावा करती रही है. चंद्रशेखर की पार्टी की नजर बिहार के करीब 20 फीसदी दलित वोट पर है।बिहार में अनुसूचित जाति (दलित) की आबादी 19.65 फीसदी और 1 प्रतिशत के करीब अनुसूचित जनजाति हैं. दलितों में तीन मजबूत जातियों में सबसे अधिक 5.31% पासवान हैं. चमार जाति की आबादी 5.26% और मुसहर की आबादी 3% प्रतिशत है. 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए को एससी के लिए आरक्षित 21 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि महागठबंधन के हिस्से में 17 सीटें आईं थीं।बिहार विधान सभा का चुनाव इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाला है. बिहार की 243 विधानसभा सीट में हर विधानसभा में दलितों की आबादी 40 से 50 हजार के बीच है. 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 38 दलित विधायक चुनाव जीतकर आए. इनमें बीजेपी और आरजेडी के 9-9, जेडीयू के 8, कांग्रेस के 4, हम पार्टी के 3, सीपीआई (एमएल) के 3 और वीआईपी-सीपीआई के एक-एक दलित विधायक हैं।इनमें पासवान जाति से 13, रविदास जाति से 13, मुसहर समाज से 7, पासी जाति के 3 और एक विधायक मेहतर जाति के शामिल हैं. खास बात ये है कि दलितों की राजनीति करने वाले चिराग पासवान को किसी भी आरक्षित सीट पर सफलता नहीं मिली. वहां जीतनराम मांझी के 4 में से 3 विधायक दलित समाज से आते हैं।पिछले कुछ वर्षों में बिहार में एनडीए के पक्ष में दलित मतदाताओं का रुझान रहा है. पासवान जाति से आने वाले चिराग पासवान और मुसहर समाज से आने वाले जीतनराम मांझी इस बार एनडीए में हैं. ऐसे में इन दो जाति से आने वाले वोटबैंक के खिसकने का खतरा नहीं के बराबर है. हम के मुख्य प्रवक्ता विजय यादव ने दावा किया कि कोई भी आ जाए लेकिन बिहार में दलित समाज एनडीए के साथ है।चंद्रशेखर रावण रविदास समाज से आते हैं. बिहार में रविदास यानी चमार की आबादी 5.26% है. दलितों की आबादी में पासवान के बाद रविदास की आबादी सबसे अधिक है. उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के कैमूर-सासाराम इलाकों में रविदास समाज की आबादी अच्छी खासी है. यही कारण है कि इन इलाकों में बहुजन समाज पार्टी अपना प्रत्याशी खड़ा करती है।