चैत्र नवरात्रि की इस दिन से होगी शुरुआत,जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

 चैत्र नवरात्रि की इस दिन से होगी शुरुआत,जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
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हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि की तरह ही चैत्र मास में पड़ने वाली चैत्र नवरात्रि का भी खास महत्व होता है. यह हिंदू वर्ष की पहली नवरात्रि होती है, जिसके साथ नववर्ष (विक्रम संवत) का भी आगमन होता है. चैत्र नवरात्रि के दौरान भक्तजन पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा भक्ति में लीन रहते हैं. धार्मिक मान्यता अनुसार चैत्र नवरात्रि ऐसा समय होता है जिस दौरान मां दुर्गा पूरे 9 दिनों तक धरती पर वास करती हैं. इसलिए इस दौरान घर-घर माता रानी की पूजा आराधना की जाती है।नवरात्रि का त्योहार पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है और घटस्थापना के साथ पूजा की शुरुआत होती है. आइए जानते हैं इस साल चैत्र नवरात्रि की शुरुआत कब हो रही है, पहले दिन किस देवी की पूजा होगी, घट स्थापना या कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त क्या रहेगा आदि?इस साल चैत्र नवरात्रि की शुरुआत रविवार 30 मार्च 2025 से हो रही है और इसका समापन रामनवमी के दिन होगा. नवरात्रि के पहले दिन गुड़ी परवा का पर्व मनाया जाएगा और हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी होगी. नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप देवी शैलपुत्री (Maa Shailputri ) की पूजा का महत्व है. प्रथम स्वरूप होने के कारण ही नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है. मान्यता है की देवी शैलपुत्री की पूजा आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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घटस्थापना शुभ मुहूर्त :

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना या घटस्थापना करना बेहद जरूरी होता है. घटस्थापना के बाद ही पूजा की शुरुआत की जाती है. रविवार 30 मार्च 2025 को सुबह 6:30 से 10:22 तक का समय कलश स्थापना के लिए बेहद शुभ रहेगा. इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त को भी कलश स्थापना के लिए शुभ माना गया है. इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:01 से 12:50 तक रहेगा।

घटस्थापना पूजा विधि:

घटस्थापना के लिए सबसे पहले शुद्ध मिट्टी में जौ मिला लें. मां दुर्गा की प्रतिमा के बगल में ही मिट्टी को रखें और इसके ऊपर एक मिट्टी का कलश रखें. कलश में गंगाजल भरकर लौंग, हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा और एक रुपये का सिक्का डालेंते. अब कलश में आम के पत्ते रखकर मिट्टी का ढक्कन लगाकर इसके ऊपर चावल, गेहूं या नारियल रखें. नारियल को रखने से पहले इसमें स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर लाल रंग के कपड़े से लपेटकर कलावा जरूर बांधें. कलश स्थापना के बाद विधि विधान से मां दुर्गा और मां शैलपुत्री की पूजा करें. देवी को सफेद फूल, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, भोग आदि लगाने के बाद घी का दीपक जलाएं और मंत्र उच्चारण करने के बाद आरती करें।

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