कांग्रेस के वोट बैंक को तोड़ने में जुटी बीजेपी,बिहार में इसबार निर्णायक भूमिका रहेंगे मुस्लिम वोटर्स

 कांग्रेस के वोट बैंक को तोड़ने में जुटी बीजेपी,बिहार में इसबार निर्णायक भूमिका रहेंगे मुस्लिम वोटर्स
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बिहार में विधानसभा चुनाव की बिछती सियासी बिसात के बीच मुस्लिम सियासत तेज हो गई है. वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ इमारत-ए-शरिया की पटना के गांधी मैदान में ‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ रैली में विपक्ष के नेता मुस्लिम समुदाय को साधते हुए नजर आए. अब दो दिन के बाद सोमवार को बीजेपी ने पसमांदा मिलन समारोह कर बड़ा सियासी दांव चला है. इस तरह मुस्लिम समुदाय के वोटों को साधने के लिए बीजेपी और विपक्ष के बीच शह-मात का खेल जारी है.बिहार में तकरीबन 18 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटों में से करीब 48 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट हार-जीत तय करते हैं. इन सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी या उससे भी अधिक है.बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. सूबे की 30 सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. इन्हीं मुस्लिम वोटों को साधने में बीजेपी और विपक्षी गठबंधन जुटे हुए हैं.वक्फ संशोधन कानून को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोग नाराज है. वक्फ बिल को पास कराने में नीतीश कुमार की जेडीयू चिराग पासवान की एलजेपी और जीतन राम मांझी की हम पार्टी का अहम रोल रहा था.

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विपक्षी दल अब नीतीश कुमार को मुस्लिम विरोधी कटघरे में खड़ी करने की कवायद में जुटे हुए हैं ताकि बिहार में मुस्लिम समुदाय के वोट साध सकें. मुस्लिम संगठन इमारत-ए-शरिया ने शनिवार को पटना के गांधी मैदान में वक्फ बचाओ दस्तूर बचाओ के नाम से रैली की, जिसमें आरजेडी से लेकर कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों के नेता मौजूद रहे.‘वक्फ बचाओ दस्तूर बचाओ’ के मंच से मुस्लिमों ने वक्फ संपत्तियों की रक्षा और संविधान की मूल भावना को बनाए रखने की मांग उठाई. वहीं, विपक्षी नेताओं के निशाने पर मोदी सरकार से लेकर नीतीश सरकार तक रही. विपक्षी नेता मुस्लिमों को यह बताते नजर आए कि नीतीश कुमार, चिराग पासवान के चलते ही मोदी सरकार वक्फ कानून बनाने में सफल रही है. इन्होंने मु्सिलम समुदाय के साथ धोखा किया है. इस तरह विपक्षी दलों के लिए वक्फ विरोध का मंच सियासी मंच में तब्दील हो गया।मुस्लिम समुदाय भी हिंदू समाज की तरह जातियों में बंटा हुआ है. मुस्लिम समाज में करीब 80 फीसदी आबादी पसमांदा यानी ओबीसी मुसलमानों की है तो 20 फीसदी के करीब अशराफ यानि अगड़ी जाति के मुस्लिमों की है. विपक्ष पूरे मुस्लिमों को साधने की कवायद में तो बीजेपी की नजर पसमांदा जाति के वोटों पर है. बीजेपी पसमांदा मुसलमानों यानी पिछड़े मुसलमानों को लुभाने के लिए पसमांदा मिलन समारोह किया तो विपक्ष वक्फ कानून का विरोध करके सियासी संदेश देने में जुटा है।राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी को लगता है कि मुस्लिमों का धर्म के आधार पर वोटिंग पैटर्न उनके खिलाफ रहता है. ऐसे में अगर मुस्लिमों के एक तबके पसमांदा पर दांव खेला जाए तो सियासी तौर पर मुफीद हो सकता है. बीजेपी को लगता है कि मुसलमानों में पसमांदा तबका सामाजिक हिस्से से अछूता रहा है और उसे इसका कोई भी लाभ कभी नहीं मिला है और यही कारण है कि भाजपा लगातार पसमांदा मुसलमानों पर डोरे डालते दिखती है. वक्फ के नए कानून को पसमांदा मुसलमानों को बीजेपी समझाने की कोशिश कर रही है कि यह कानून उनके हिस्सेदारी देने के लिए लाया गया है।

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