दलितों के बिना अधूरी है भाजपा,पासवानों के बीच एनडीए का है दबदबा!

बिहार की चुनावी लड़ाई में इस बार दोनों गठबंधनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। इस चुनावी युद्ध में जीत उस गठबंधन की हो सकती है जो बिहार के सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में मोड़ लेने में सफल होगा। इसे ध्यान में रखते हुए भाजपा ने बिहार के दलितों को अपने पाले में लाने के लिए ‘दलित बस्ती संपर्क अभियान’ चला रखा है। इन संपर्क कार्यक्रमों में दलित समुदाय के पढ़े-लिखे युवाओं-विद्वानों के बीच यह विमर्श खड़ा करने की कोशिश की जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की सरकार दलितों के उत्थान के लिए किस तरह कारगर साबित हुई है। बिहार में दलितों की आबादी लगभग 19 प्रतिशत है। केंद्र सरकार ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं चलाकर दलित समुदाय को साधने का काम किया है।

भाजपा अपने दलित बस्ती संपर्क अभियान में उन दलित लाभार्थियों को भी बुला रही है जिन्होंने केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लिया है। इसका उद्देश्य दलित समुदाय के बीच यह संदेश देना है कि केंद्र सरकार ने उनका जीवन स्तर बदलने का काम किया है। इसी तरह नीतीश कुमार सरकार ने भी बिहार में बेहतर काम किया है। भाजपा बिहार सरकार के लाभार्थियों तक भी पहुंचने की कोशिश कर रही है।कांग्रेस-राजद का महागठबंधन जातिगत जनगणना के मुद्दे के सहारे दलितों का वोट हासिल करने की रणनीति पर चल रहा है। राज्य के वामदल भी इसमें अपना सहयोग कर रहे हैं। ऐसे में महागठबंधन की दावेदारी भी कमजोर नहीं है। लेकिन इसी विमर्श की काट के तौर पर भाजपा दलितों के बीच नए पढ़े-लिखे युवाओं को अपने साथ जोड़कर यह विमर्श पैदा करने की कोशिश कर रही है कि एनडीए ने उनके लिए बेहतर कामकाज किया है।भाजपा कार्यकर्ता दलितों के बीच केवल विमर्श ही पैदा करने की कोशिश नहीं कर रहे, बल्कि उनको साथ लेकर उन्हें सामाजिक स्तर पर सम्मान देने का काम भी कर रहे हैं। खान-पान के कार्यक्रम रखकर उनके बीच भागीदारी बढ़ाने का काम भी चल रहा है। इसमें आरएसएस के अनुषांगिक संगठन भी जुटे हुए हैं। बिहार में पासवान दलित समुदाय की आबादी पूरे दलित समुदाय की लगभग 30.9 प्रतिशत है। दलितों के नेता के रूप में रामविलास पासवान इस समय भी सबसे बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। उनका असर है कि चिराग पासवान की न केवल अपने क्षेत्र में लोकप्रियता है, बल्कि वे पूरे राज्य के दलितों के बीच लोकप्रिय हैं। वे भाजपा के साथ एनडीए में रहते हुए इस गठबंधन के लिए बड़े उपयोगी साबित हो सकते हैं। हम पार्टी के नेता जीतन राम मांझी महादलित जातियों के बीच अच्छा असर रखते हैं। इसके अलावा भी भाजपा अलग-अलग क्षेत्रों में दलितों को साधने में जुटी हुई है।भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. संजय निर्मल ने मीडिया से कहा कि दलित समुदाय के लोग आजादी के समय से ही कांग्रेस के वोट बैंक बनकर रह गए थे। बाद में कुछ दलों ने इन जातियों के नाम पर राजनीति करने की कोशिश की, लेकिन इनके नेताओं ने इन जातियों का आर्थिक-सामाजिक उत्थान करने की बजाय अपना ही उत्थान करने का काम किया। यही कारण है कि दलितों के जीवन स्तर में कोई बड़ा व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में केंद्र में सरकार संभाली, उसके बाद स्थिति में तेजी के साथ परिवर्तन आया है। केंद्र सरकार ने पीएम आवास योजना, पीएम विश्वकर्मा योजना और जनधन योजनाओं के सहारे दलितों के जीवन स्तर को उठाने का बड़ा काम किया है। यही कारण है कि केवल पिछले 11 वर्षों में ही दलितों के जीवन स्तर में गुणात्मक परिवर्तन आया है। भाजपा नेता डॉ. निर्मल ने आरोप लगाया कि आज भी कई दल अंबेडकर के नाम पर राजनीति करने का काम कर रहे हैं, लेकिन पीएम मोदी अंबेडकर के सपनों को जमीन पर उतारने का काम कर रहे हैं। यही कारण है कि पीएम मोदी आज दलितों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह बिहार की एनडीए सरकार ने भी दलितों के उत्थान के लिए बेहतर काम किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र और बिहार सरकार के इन कार्यों का परिणाम बिहार में दिखाई दे रहा है।