महाकुंभ में देश के अलावा विदेश से भी पहुंच रहे हैं साधु-संत,विश्व शांति के लिए प्रार्थना करने आ रही हैं जापान की योगमाता

 महाकुंभ में देश के अलावा विदेश से भी पहुंच रहे हैं साधु-संत,विश्व शांति के लिए प्रार्थना करने आ रही हैं जापान की योगमाता
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महाकुंभ में देश के अलावा विदेश से भी साधु-संत पहुंच रहे हैं. कुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होगा और 26 फरवरी को समाप्त होगा. श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के दिवंगत महायोगी महामंडलेश्वर स्वामी सोमनाथ गिरि उर्फ पायलट बाबा के शिविर के संतों के मुताबिक संगम लोअर सेक्टर-18 में विदेशी संतों के लिए शाही लकड़ी के कॉटेज बनाए जा रहे हैं. यहीं जापान की योगमाता – महामंडलेश्वर कीको आइकावा उर्फ कैला माता की भी मौजूदगी रहेगी. इनके नेतृत्व में विश्व शांति के लिए प्रार्थना करने की खबरे हैं.कौन हैं योगमाता? दरअसल, जापान के यामानाशी में कीको ऐकावा (जिन्हें अब दुनिया योगमाता पुकारती है) ने योग और ध्यान के प्रति अपने जुनून की खोज की. उनकी गहन जिज्ञासा उन्हें आत्म-खोज की यात्रा पर ले गई, जहाँ वे राष्ट्रीय स्तर पर योग प्रशिक्षक के रूप में जानी गईं. वे भारतीय आध्यात्मिकता के केंद्र हिमालय भी आईं.

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38 वर्ष की उम्र में कीको की मुलाकात हिमालय के योगी पायलट बाबा से हुई, जिनकी शिक्षाएँ उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गईं.योगमाता का शुरूआती जीवन1945 में जन्मी योगमाता का प्रारंभिक जीवन योग और ध्यान के केन्द्र में बीता. किशोरावस्था में उन्होंने आध्यात्मिकता की तरफ रूझान किया. बीस की उम्र तक उनकी प्रतिभा ने उन्हें जापान में एक प्रमुख योग प्रशिक्षक के रूप में स्थापित कर दिया. 1972 में उन्होंने ऐकावा कीको होलिस्टिक योग और स्वास्थ्य संघ की स्थापना की. जिसके माध्यम से उन्होंने प्राणादि योग और योग नृत्य जैसी क्रांतिकारी प्रथाओं की शुरुआत की. जिसने उनके देश में हजारों अनुयायियों को आकर्षित किया.अपनी खोज की चाह में वो जापान से भारत की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं की तरफ आईं. 38 वर्ष की उम्र में, उनके जीवन ने एक अहम मोड़ लिया, जब उनकी मुलाकात हिमालय के प्रसिद्ध योगी और ध्यान गुरु पायलट बाबा से हुई. उनकी क्षमता को पहचानते हुए पायलट बाबा ने उन्हें संत हरि बाबाजी के मार्गदर्शन में हिमालय की कठोर तपस्वी प्रथाओं में प्रशिक्षित होने को कहा. कहते हैं कई बरस की साधना के बाद उन्होंने समाधि प्राप्त की, जो ध्यान की सर्वोच्च अवस्था है.कुंभ और योगमाता की मौजूदगीफरवरी 1991 में भारत में आयोजित उनकी पहली सार्वजनिक समाधि ने लोगों को आकर्षित किया. अगले 16 वर्षों में, उन्होंने पूरे भारत में 18 बार ये कर के लोगों को दिखाया. 2007 में, उनकी उपलब्धियों ने उन्हें जूना अखाड़े से महामंडलेश्वर की प्रतिष्ठित उपाधि दिलाई, जिससे वह यह सम्मान पाने वाली इतिहास की पहली महिला बन गईं. इस कुंभ में भी योगमाता पहली महिला महामंडलेश्वर के रूप में मौजूद होकर न केवल रूढ़ियों को तोड़ रही हैं.

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