हिंदुओं की आबादी को लेकर चिंतित है मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा,बढ़ते जा रहा है मुस्लिम बहुल क्षेत्र!

 हिंदुओं की आबादी को लेकर चिंतित है मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा,बढ़ते जा रहा है मुस्लिम बहुल क्षेत्र!
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असम भी उन राज्यों में शुमार है जहां अगले साल विधानसभा चुनाव कराए जाने हैं. वहां पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अपनी कुर्सी बचाने के लिए लगातार कोशिशों में जुटे हैं. इस बीच सरमा ने एक बार फिर हिंदुओं की घटती आबादी को लेकर निराशा जताई और उन्होंने राज्य में मुसलमानों की तुलना में घटती जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए हिंदुओं से कम से कम 3 बच्चे पैदा करने की सलाह भी दे डाली. बीजेपी एक दशक से सत्ता में है, बावजूद इसके मुख्यमंत्री सरमा मुसलमानों की बढ़ती आबादी से टेंशन में हैं.भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) असम में 2016 से ही लगातार सत्ता में बनी हुई है. पार्टी की कोशिश अगले साल के चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने की है. हिमंत बिस्वा सरमा अभी से ही चुनाव प्रचार में जुट गए हैं. वह लगातार हिंदुओं और बंगाली मुसलमानों से जुड़े मामले उठा रहे हैं. राज्य में हिंदुओं की गिरती संख्या पर भी चिंता जता रहे हैं. सरमा ने राज्य के बरपेटा में मुसलमानों की तुलना में घटती आबादी को रोकने के लिए हिंदुओं को कम से कम 3 बच्चे पैदा करने की सलाह दी. उनका कहना था कि यदि हिंदू अधिक बच्चे पैदा नहीं करेंगे तो ‘घर की देखभाल’ करने के लिए लोग नहीं बचेंगे.अगले साल मार्च-अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सरमा ने कहा, “अल्पसंख्यक क्षेत्रों में, उनकी (मुस्लिम) जन्म दर अधिक है.

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जबकि हिंदुओं में जन्म दर लगातार कम होती जा रही है और इसीलिए अंतर बना हुआ है. असम के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ती जा रही है. उनका कहना है कि हर हिंदू को एक बच्चे पर नहीं रुकना चाहिए और उन्हें 2 या 3 बच्चों को जन्म देना चाहिए. जबकि मुस्लिम लोगों को यह सलाह दी जाती है कि वे 7 या 8 बच्चे पैदा न करें और कम संतान पैदा करें.इससे पहले भी सीएम सरमा राज्य में हिंदुओं की घटती आबादी पर चिंता जता चुके हैं. 9 नवंबर को भी उन्होंने दावा किया था कि हिंदू आबादी की वृद्धि कम होती जा रही है, और मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है. मुख्यमंत्री यह साफ कर चुके हैं कि सरकार राज्य में विशिष्ट योजनाओं के तहत लाभ लेने के लिए 2 बच्चों की पॉलिसी को लागू करेगी.तो क्या असम में बढ़ते जा रहे मुस्लिम बहुल क्षेत्रजीत की हैट्रिक लगाने की कवायद में जुटी बीजेपी और सरमा के लिए असम में बदलते हालात चिंता का सबब बनते जा रहे हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, असम में मुसलमानों की कुल आबादी 1.07 करोड़ थी और यह राज्य के कुल 3.12 करोड़ लोगों में 34.22 फीसदी थी. जबकि हिंदुओं की संख्या 1.92 करोड़ थी और यह कुल आबादी का करीब 61.47 फीसदी था.असम में जनसांख्यिकीय परिवर्तन की बात बीजेपी हमेशा से करती रही है. 2001 में यहां के 6 जिले मुस्लिम बहुल थे जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 9 जिले हो गए. पार्टी की ओर से दावा किया जाता है कि वर्तमान में यह संख्या बढ़कर कम से कम 11 हो गई है.साल 2001 की जनगणना में जब असम में 23 जिले हुआ करते थे और इसमें से 6 जिले धुबरी (74.29), गोलपारा (53.71), बारपेटा (59.37), नौगांव (51), करीमगंज (52.3) और हैलाकांडी (57.63) मुस्लिम बहुमत हो गए थे. यह संख्या राज्य में तेजी से बढ़ती रही. 2011 में असम में जिलों की संख्या बढ़कर 27 तक पहुंच गई और उनमें से 9 जिले मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हो गए. अब मुस्लिम बाहुल्य जिलों में धुबरी (79.67) के अलावा बारपेटा (70.74), दरांग (64.34), हैलाकांडी (60.31), गोलपारा (57.52), करीमगंज (56.36), नौगांव (55.36), मोरीगांव (52.56), बोंगाईगांव (50.22) शामिल हो गए.… लेकिन लगातार गिरती जा रही फर्टिलिटी रेटएक ओर बीजेपी और सरमा राज्य में मुस्लिमों की बढ़ती आबादी से चिंतित हैं जबकि यहां फर्टिलिटी रेट (Total Fertility Rate, TFR) में लगातार गिरावट ही आ रही है. सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में जहां 2018 में फर्टिलिटी रेट 2.2 था जो 2023 में घटकर 2.0 हो गया.राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में टोटल फर्टिलिटी रेट साल 2023 में 2.1 था, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 1.3 से भी कम था. असम ने 2018 और 2019 के बीच 2.2 का टीएफआर दर्ज किया था, जबकि 2020 में यह घटकर 2.1 हो गया और अगले 2 सालों तक उसी स्तर पर रहा, लेकिन 2023 में यह दर गिरकर 2.0 तक हो गया.बीजेपी भले ही असम में जनसांख्यिकीय परिवर्तन को लेकर चिंता जताती रही हो, लेकिन वह पिछले 10 सालों से सत्ता में बनी हुई है. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पहली बार राज्य की सत्ता पर काबिज हुई और अपना मुख्यमंत्री बनाया था. तब चुनाव में करीब 85 फीसदी वोटिंग हुई थी और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने 126 सीटों में से 86 सीटों पर कब्जा जमा लिया. तब सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में बीजेपी ने 84 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे जिसमें उसे 60 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.पूर्वोत्तर राज्य असम में अपना पहला 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद बीजेपी 2021 में अपनी सत्ता बचाए रखने में कामयाब रही. 2016 की तुलना में इस बार 2.30 फीसदी कम यानी 82 फीसदी से अधिक वोट डाले गए, एनडीए को 11 सीटों का नुकसान हुआ और उसे 75 सीटों पर जीत हासिल हुई. पार्टी अपनी सत्ता बचाए रखने में कामयाब रही, सोनोवाल की जगह हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया.2021 के चुनाव में महाजोत ने NDA को दिखाया दमराज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच चुनावी संघर्ष को देखें तो बीजेपी एनडीए के साथ मैदान में उतरी तो कांग्रेस अन्य दलों के साथ महाजोत गठबंधन के साथ मैदान में उतरी. 2021 के चुनाव में एनडीए को 44.51 फीसदी वोट मिले तो महाजोत के खाते में 43.68 फीसदी वोट आए. भले ही वोट शेयरिंग में ज्यादा अंतर न रहा हो, लेकिन महाजोत से 25 अधिक सीटें हासिल कर एनडीए सत्ता बचाए रखने में कामयाब रहा था.हालांकि कई दलों के साथ मैदान में उतरे महाजोत का प्रदर्शन भी 2016 में यूपीए की तुलना में बहुत शानदार रहा था. 2016 में 26 सीट की जगह 2021 में उसे 50 सीटें आई थीं. 2016 के चुनाव में एनडीए के खाते में 41.9 फीसदी वोट आए थे तो कांग्रेस की यूपीए को 31.0 फीसदी वोट मिले थे. वहीं अगर बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर की बात करें तो पिछले चुनाव में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था. बीजेपी को 33.6 फीसदी वोट (60 सीट) मिले तो कांग्रेस के खाते में 30.0 फीसदी वोट (29 सीट) आए थे. इसी तरह 2016 में बीजेपी को 29.8 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 31.3 फीसदी वोट मिले.तो क्या 2021 का प्रदर्शन है चिंता का सबबअगले साल मार्च-अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले असम में बीजेपी पूरी तैयारी से साथ मैदान में उतर रही है. पार्टी के शीर्ष नेता राज्य का ताबड़तोड़ दौरा कर रहे हैं, और वे अपने चुनावी अभियान में “बांग्लादेशी घुसपैठियों” और बंगाली मूल के मुसलमानों द्वारा कथित तौर पर जमीन पर कब्जे के मुद्दों को उठा रहे हैं.सीएम का दावा है कि 2027 में अगली जनगणना तक बंगाली मूल के मुसलमान असम की आबादी का करीब 40% हो जाएंगे. जबकि असम के मूल निवासियों की आबादी घट रही है और इससे “जनसांख्यिकीय बदलाव” का डर पैदा हो रहा है. शायद हिमंता के दिमाग में साल 2021 के चुनाव में महाजोत का प्रदर्शन बना हुआ है, इसलिए वह अभी से हिंदुओं के वोट को साधने की जुगत में लग गए हैं.

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