2017 में भी नाकामयाब हुए थे प्रशांत किशोर,सपा और कांग्रेस को पहुंचाए थे बड़ा नुकसान
पीके की नई पार्टी जन सुराज बिहार विधानसभा चुनाव में बुरी तरह फेल हो गया। प्रशांत किशोर, चुनाव से पहले तो अलग-अलग इंटरव्यू में पर्चियों पर लिखकर बड़े-बड़े दावे कर रहे थे लेकिन चुनाव का परिणाम आया तो उनकी पार्टी का डिब्बा गोल रहा। जन सुराज पार्टी, बिहार में 1 भी सीट नहीं जीत पाई। इसके बाद से ही पीके की रणनीति पर सवाल उठने लगे। तमाम सोशल मीडिया वीर कहने लगे कि प्रशांत किशोर की बाजी पहली बार चुनाव में उलटी पड़ी है। पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट के तौर पर उन्होंने जिस भी राजनीतिक दल के साथ काम किया, वह हमेशा जीता ही है, चाहे वह तृणमूल कांग्रेस हो, डीएमके हो, आम आदमी पार्टी हो या YSRCP. लेकिन ऐसा नहीं है। सच तो ये है कि 2017 में भी प्रशांत किशोर की पॉलिटिकल स्ट्रैटेजी बुरी तरह फेल हो गई थी। उनकी रणनीति की वजह से कांग्रेस 28 से सीधे 7 सीटों पर आकर सिमट गई थी।

इस आर्टिकल में पढ़िए, प्रशांत किशोर की सियासी रणनीति कब और क्यों फेल हो गई थी।बात है 2017 की, जब प्रशांत किशोर पॉलिटिकल स्ट्रैटिजिस्ट के तौर पर देशभर में मशहूर हो चुके थे। हर जगह ये चर्चा सुनने में मिलती थी कि कोई बहुत बड़े सियासी रणनीतिकार आए हैं पीके। पीके मतलब प्रशांत किशोर। पीके ने 2014 में जब बीजेपी के साथ काम किया तो वह जीत गई। 2015 में जब वह नीतीश कुमार के साथ बिहार चुनाव में रहे तो वो भी जीत गए। शायद, इन्हीं तथाकथित बातों से प्रभावित होकर कांग्रेस आलाकमान ने प्रशांत किशोर और उनकी I-PAC यानी Indian Political Action Committee की मदद लेनी चाही। उन्होंने यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाने का काम सौंप दिया।प्रशांत किशोर आए तो उन्होंने यूपी विधानसभा चुनाव 2017 से पहले सूबे में कांग्रेस की हवा बनाने के लिए ”27 साल यूपी बेहाल” का नारा दिया, जिसमें बीजेपी, बीएसपी और सपा तीनों को टारगेट किया गया। चूंकि कांग्रेस पिछले 27 साल से यूपी की सरकार में नहीं थी तो ये नारा उसको खूब अच्छा भी लग रहा था। इस नारे के साथ यूपी में कांग्रेस ने यात्रा भी निकाली थी। लेकिन जब जमीन पर कांग्रेस के लिए कुछ माहौल बनता नहीं दिखा तो मौका देखकर पीके ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस को सपा से गठबंधन करने की सलाह दे डाली। तब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और सूबे के मुखिया थे अखिलेश यादव। तब पीके ने अखिलेश और राहुल गांधी को साथ लाने के लिए एक और नारा दिया। ये नारा था ”2 लड़कों की जोड़ी”।खैर जब सपा से गठबंधन हुआ तो कांग्रेस का रवैया भी बदल गया। कांग्रेस ने सूबे में उन दीवारों को फिर पेंट करवाना शुरू कर दिया जिनपर उसने ”27 साल यूपी बेहाल” का नारा लिखवाया था। चूंकि इस नारे में सपा सरकार का कार्यकाल भी शामिल था, इसलिए कांग्रेस ने इससे किनारा कर लिया था। अब कांग्रेस, सपा के कार्यकाल की तारीफ करते नहीं थक रही थी। जनता को अखिलेश यादव और उनकी सरकार की उपलब्धियां गिना रही थी। चुनाव में प्रचार के दौरान, राहुल गांधी और अखिलेश यादव, चुनावी मंचों पर एक साथ दिखे। उन्होंने लखनऊ में बड़ा रोड शो भी किया।लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव 2017 के लिए जब वोट डाले गए तो कांग्रेस के लिए बनाई गई प्रशांत किशोर की रणनीति बुरी तरह फेल हो गई। चुनाव का रिजल्ट आया तो बीजेपी गठबंधन ने यूपी में अबतक की अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। बीजेपी गठबंधन ने पहली बार 325 सीटों का आंकड़ा छुआ। अकेले दम पर बीजेपी ने 312 सीटें हासिल की। दूसरी तरफ, सपा 47 सीटों पर सिमट गई और जो कांग्रेस पिछले चुनाव में 28 सीटें जीती थी, उसका तो पीके के आने के बाद और बुरा हाल हो गया। कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन करने के बाद महज 105 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस, इन 105 में से केवल 7 सीटों पर जीत हासिल कर पाई।
