जान लीजिए किसका पलड़ा है भारी?नीतीश या तेजस्वी

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बिहार विधानसभा चुनाव निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। मुकाबला अब सिर्फ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के बीच का नहीं रहा, बल्कि दो बिल्कुल अलग राजनीतिक भावनाओं के बीच फंसा हुआ है। एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशासनिक पकड़ और अनुभव है, तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव का नौकरी केंद्रित और आक्रामक युवा अभियान।इन दोनों प्रमुख ध्रुवों के साथ तीसरी और बेहद प्रभावशाली धारा बह रही है…नीतीश कुमार के प्रति सहानुभूति की अनकही लहर। यह सहानुभूति किसी प्रचार से नहीं, बल्कि सड़क, बिजली, कानून-व्यवस्था जैसे बुनियादी सुधारों को दो दशकों में जमीन पर उतारने वाले नेता के प्रति जनता की भावनात्मक स्वीकृति से उपजी है। यह एक्स-फैक्टर इस चुनाव के समीकरणों को चुपचाप बदलने की ताकत रखता है। तेजस्वी का युवा जोश इससे टकराकर बाजी अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटा है। मंगलवार को दूसरे और अंतिम चरण में 122 सीटों के लिए होने वाले मतदान में ये तत्व ज्यादा असरदार होंगे।एंटी-इन्कम्बेंसी पर सहानुभूति का कवच: नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए के पक्ष में सबसे बड़ी पूंजी उनका लंबा प्रशासनिक अनुभव और लोगों में उनके प्रति बना सम्मान है। नीतीश का आखिरी चुनाव है और बिहार में जो भी उन्होंने किया है, उसके प्रति हर वर्ग और क्षेत्र में उनके मुरीद हैं। 20 वर्ष के शासन के बावजूद, नीतीश के खिलाफ कोई कठोर सत्ता विरोधी लहर नहीं दिखी। विरोधियों ने उनके स्वास्थ्य को मुद्दा बनाकर बीमार मुख्यमंत्री का जो नैरेटिव चलाया, वह उनकी 80 से अधिक रैलियों और लंबी सड़क यात्राओं के सामने धराशायी हो गया। ग्रामीण और बुजुर्ग मतदाताओं में उनकी उम्र, थकान और विनम्रता ने हमरा आदमी (हमारा आदमी) वाली भावना पैदा की, जो सहानुभूति का मजबूत राजनीतिक आवरण बन गई।

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विकास का यथार्थवादी ट्रैक रिकॉर्ड: हर घर नल-जल, सड़क, पानी और महिला सुरक्षा जैसे जमीनी सुधारों ने ऐसा यथार्थवादी दृष्टिकोण बनाया है कि मतदाता उन्हें प्रशासन चलाना जानने वाला नेता मानते हैं। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों के बीच यह भावना स्थिरता और प्रशासनिक समझ के पक्ष में वोट को सुरक्षित करने का काम करती है। सुशासन बाबू की नीतीश की छवि उनकी सबसे बड़ी ताकत है। भले ही पिछले कार्यकाल में चार लाख नौकरियों का श्रेय तेजस्वी ले रहे हों, लेकिन नीतीश के निश्चय में नौकरियां प्रमुख मुद्दा था और करीब 50 लाख रोजगार के अवसर पैदा कराने का उनका वादा भी पूरा होता दिखा है। महिलाओं के खाते में गया धन, उनके वादे को पूरा करने के निश्चय को और ताकत देता दिखता है।सामाजिक और आर्थिक न्याय: तेजस्वी के नेतृत्व वाला महागठबंधन युवा और बेरोजगारों के बीच आक्रामक लहर पैदा करने में सफल रहा है। माई के अलावा कुछ वर्गों में थोड़ा ही सही, लेकिन तेजस्वी से युवा आकर्षित हुए हैं। वह पिता लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय से आगे आर्थिक न्याय की बातें कर रहे हैं। नौकरियों में कोई जाति नहीं, सिर्फ बेरोजगारी दूर करने का उद्देश्य होगा…यह नैरेटिव ताकतवर है। तेजस्वी का हर घर नौकरी का प्रण और आर्थिक न्याय पर फोकस पूरे चुनावी विमर्श को विकास केंद्रित और युवा केंद्रित बनाने में सफल रहा। यह घोषणा बेरोजगार युवाओं और पहली बार वोट करने वालों में काफी उम्मीद जगाती है। इस सोच ने युवाओं के बीच तेजस्वी की पैठ कराई है।सामाजिक समीकरण में परिपक्वता: महागठबंधन ने अति पिछड़ा, वैश्य व कुशवाहा वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर यादव-मुस्लिम समीकरण से आगे निकलने की कोशिश की है। यह संतुलन उनके गठबंधन की संभावनाओं को मजबूत करता है। यादवों के टिकट पिछली बार की तुलना में कम किए और अति पिछड़ा वर्ग को ज्यादा भागीदारी देने की कोशिश की है। साथ ही पिछली बार की तुलना में मुस्लिमों को भी ज्यादा टिकट दिए हैं। महागठबंधन की सबसे बड़ी संरचनात्मक कमजोरी उसके सहयोगी दलों का कमजोर जमीनी प्रदर्शन व राजद पर अत्यधिक निर्भरता है। अंतिम चरण में तेजस्वी का धांधली व सुरक्षा बलों पर आरोप लगाना आक्रामक सियासी कदम है, पर यह विपक्षी पार्टी के तौर पर चुनावी प्रक्रिया को लेकर चिंता को भी दिखाता हैओवैसी फैक्टर: असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमएम सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में महागठबंधन (राजद/कांग्रेस) के पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाती है। मुस्लिम युवाओं का एक वर्ग ओवैसी से प्रभावित है, जिससे महागठबंधन के उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ी हैं।पीके फैक्टर: प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी कुछ सीटों पर, खासकर उन क्षेत्रों में, जहां शेरशाहवादी मुसलमान और मुद्दे आधारित वोट निर्णायक हैं, निर्दलीयों या समर्थित प्रत्याशियों के जरिये समीकरण बिगाड़ सकती है।पीके-ओवैसी मिलकर विपक्ष के पारंपरिक वोट बैंक तोड़ने का काम कर रहे हैं, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिल सकता है। हालांकि, पीके सवर्ण वोट भी जितने काटेंगे, एनडीए को नुकसान उतना ही होगा। तय होगा कि बिहार प्रशासनिक अनुभव और भावनात्मक स्थिरता को प्राथमिकता देता है या युवा जोश और तीव्र आर्थिक उम्मीदों को, या नए राजनीतिक खिलाड़ियों का भी पदार्पण होगा।

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