महिला वोटरों को लुभाने वाले वादे से क्या होगा विकास?महिला उम्मीदवारों को नहीं मिला टिकट
बिहार विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों को लुभाने के लिए राजनीति दल जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं. सरकारी योजनाओं के वादे और नकद पैसों को महिलाओं के खातों में ट्रांसफर किया जा रहा है, लेकिन महिलाओं को टिकट देने के मामले में सभी पार्टियां पीछे हैं. बिहार में इस बार भी महिलाओं को बराबरी के टिकट वितरण से बहुत दूर रखा गया है.इस बार 258 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं, जबकि पुरुष उम्मीदवारों की संख्या 2,357 है. ये संख्या पिछले 15 सालों में सबसे कम है. जिससे पता चलता है राजनीतिक दलों के महिलाओं को हिस्सेदारी के दावे महज चुनावी मंचों तक सीमित हैं.भले महिलाओं को बराबर खड़े करने और सशक्त बनाने के लिए दिए जाने वाले टिकटों से दूर रखा गया हो, लेकिन चुनाव में महिला वोटरों को ‘किंगमेकर’ माना जा रहा है, खासकर NDA के लिए.

बिहार सरकार ने महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, जैसे मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.25 करोड़ महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये भेजे जा चुके हैं. पुलिस भर्ती में 35 फीसद और पंचायतों में 50 फीसद रिजर्वेशन दिया गया है. वहीं, महागठबंधन ने भी ‘माई-बहन मान योजना’ जैसे वादे किए हैं, जिसमें हर महिला को 2,500 रुपये हर महीने देने का ऐलान किया गया है.जब महिला उम्मीदवारों की कम संख्या का सवाल राजनीतिक पार्टियों से पूछा जा रहा है, तो सभी दलों का एक ही जवाब है कि उन्हें कम टिकट ‘विनेबिलिटी’ यानी जीतने की क्षमता के कारण नहीं दिया गया है. पार्टियों का कहना है कि महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाती. पिछले विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड देखें तो 370 महिला उम्मीदवारों में से सिर्फ 26 जीत सकीं, यानी सफलता दर 7 फीसद रही है. वहीं पुरुष उम्मीदवारों की जीत दर करीब 10 फीसद रही.चुनाव लड़ रही बड़ी पार्टियों में महिलाओं को टिकट बसपा सबसे आगे है, जिसने 26 महिला उम्मीदवार उतारे हैं. जन सुराज ने 25, RJD ने 23, JDU और BJP ने 13-13 और कांग्रेस ने सिर्फ 5 महिलाओं को टिकट दिया है. यह डेटा बताता है कि वोट बैंक के तौर पर महिलाओं की अहमियत तो सबको समझ आती है, लेकिन उन्हें टिकट देकर सशक्त बनाने की बात सिर्फ कागजों तक ही सीमित है.
