शारदीय नवरात्रि का आज है छठा दिन,जानें मां कात्यायनी की मंत्र और आरती
आज रविवार,28 सितंबर को शारदीय नवरात्रि का छठा दिन है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि का छठा दिन कात्यायनी माता को समर्पित माना जाता है. इस दिन मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है और उनके निमित्त व्रत किया जाता है. नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी देवी को अलग भोग भी लगाया जाता है. विवाह में आ रहीं रुकावटों से मुक्ति पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा विशेषरूप से पूजा की जाती है. अगर आप भी नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा करने जा रहे हैं, तो चलिए आपको बताते हैं मां कात्यायनी का मंत्र, पूजा विधि, भोग उनका प्रिय रंग.मां दुर्गा का छठा रूप मां कात्यायनी है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उन्हें कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने ऋषि कात्यायन की कठिन तपस्या के बाद जन्म लिया था. माता रानी का यह स्वरूप शक्ति, साहस और समृद्धि की प्रतीक है. मां कात्यायनी शत्रुओं का नाश करती हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करती हैं, जिससे जीवन सुखमय बनता है।

मां कात्यायनी का मंत्र क्या है?
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी का मंत्र हैं – “ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥”. इसके अलावा आप “या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”, “कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥” और विवाह की मनोकामना के लिए “कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।” मंत्रों का जाप भी नवरात्रि के छठे दिन कर सकते हैं।
कात्यायनी माता की आरती:
जय जय अम्बे जय कात्यायनी.
जय जगमाता जग की महारानी.
बैजनाथ स्थान तुम्हारा.
वहां वरदाती नाम पुकारा.
कई नाम हैं कई धाम हैं.
यह स्थान भी तो सुखधाम है.
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी.
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी.
हर जगह उत्सव होते रहते.
हर मन्दिर में भगत हैं कहते.
कात्यायनी रक्षक काया की.
ग्रंथि काटे मोह माया की.
झूठे मोह से छुडाने वाली.
अपना नाम जपाने वाली.
बृहस्पतिवार को पूजा करिए.
ध्यान कात्यायनी का धरिये.
हर संकट को दूर करेगी.
भंडारे भरपूर करेगी.
जो भी मां को भक्त पुकारे.
कात्यायनी सब कष्ट निवारे.
मां कात्यायनी की कथा:
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की कथा के अनुसार, एक समय की बात है, कत नाम के एक महर्षि थे, जिनके पुत्र का नाम कात्य था और उन्हीं के गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए. महर्षि कात्यायन की कोई संतान नहीं थी, इसी वजह से उन्होंने पुत्री सुख प्राप्त करने के लिए देवी भगवती का कठोर तप किया. उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें वरदान दिया कि वह उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी.कुछ समय बाद महिषासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य ने धरती पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिससे सभी देवता परेशान हो उठे. सभी देवताओं के कहने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने तेज से एक देवी को उत्पन्न किया. फिर देवताओं ने उस देवी का नाम कात्यायनी रखा, क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले महर्षि कात्यायन के यहां जन्म लिया था और उनकी पूजा की थी.इसके बाद मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया और सभी देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया. इसी कारण नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी माता की पूजा की जाती है और उन्हें महिषासुरमर्दिनी के रूप में भी जाना जाता है।
