नवरात्रि के छठे दिन आज होगी मां स्कंदमाता की पूजा,जरूर करें आरती
आज नवरात्रि का छठा दिन, मां स्कंदमाता की पूजा, स्कंद षष्ठी और शनिवार व्रत है. आज पंचमी तिथि है, इसलिए आज मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है. वैसे भी आज स्कंद षष्ठी व्रत का संयोग बना है. इसमें भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं. आज आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, बालव करण, प्रीति योग, पूर्व का दिशाशूल और वृश्चिक में चंद्रमा है. रवि योग सुबह में 06:12 बजे से लेकर सुबह 07:15 बजे तक है. रवि योग में स्कंदमाता की पूजा करें. जैसा कि आपको नाम से ही पता है स्कंदमाता वो देवी हैं, जिनके पुत्र का नाम स्कंद है. स्कंदमाता का अर्थ है स्कंद की माता. स्कंद भगवान कार्तिकेय को कहते हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं. स्कंदमाता मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप हैं. इनकी पूजा करने से संतान, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मां स्कंदमाता के मंत्र पूजा के समय निम्न मंत्र का जाप करें:
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
स्कंद माता की आरती:
जय तेरी हो स्कंद माता
पांचवां नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं
हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं
कई नामों से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कहीं पहाड़ों पर है डेरा
कई शहरो मैं तेरा बसेरा
हर मंदिर में तेरे नजारे
गुण गाए तेरे भगत प्यारे
भक्ति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इंद्र आदि देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए
तुम ही खंडा हाथ उठाए
दास को सदा बचाने आई
‘चमन’ की आस पुराने आई।
मां स्कंदमाता की व्रत कथा:
यह कथा उस समय की है, जब धरती पर तारकासुर नाम का एक दैत्य राक्षस था. तारकासुर ने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया इसकी वजह से स्वयं ब्रह्मा जी को उसके सामने प्रकट होना पड़ा. इसके बाद ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने को कहा, तो तारकासुर ने अमरता का वरदान मांगा. ब्रह्मा जी ने समझाया, तारकासुर, जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है. इस संसार में कोई भी अमर नहीं हो सकता. यह सुनकर तारकासुर थोड़ा निराश हुआ, लेकिन वह बहुत चतुर था. उसने सोचा कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे और न ही उनके कोई संतान होगी. यह विचार दिमाग में आते ही उसने ब्रह्मा जी से एक और वरदान मांगा. उसने कहा, प्रभु, मुझे यह वरदान दें कि मेरी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों हो।ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे यह वरदान दे दिया. वरदान प्राप्त करते ही तारकासुर का अहंकार और ज्यादा बढ़ गया. वह समझ गया था कि अब उसे कोई नहीं मार सकता. उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया. देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों पर उसका अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था. स्वर्गलोक से देवराज इंद्र को भगा दिया गया और तारकासुर ने स्वयं को तीनों लोकों का स्वामी घोषित कर दिया।तारकासुर के आतंक से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद की गुहार लगाई. भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि तारकासुर को केवल भगवान शिव का पुत्र ही मार सकता है, इसलिए इसका एकमात्र उपाय यही है कि भगवान शिव विवाह करें और उनके यहां एक पुत्र का जन्म हो. देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की, जो उस समय गहरी तपस्या में लीन थे. देवताओं की प्रार्थना सुनकर और संसार की दुर्दशा देखकर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने का निर्णय लिया. इसके बाद, भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ. उनके यहां एक अत्यंत तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तिकेय रखा गया. उन्हें ही स्कंद कुमार के नाम से भी जाना जाता है.माता पार्वती ने अपने पुत्र को स्वयं युद्ध कला और अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया. उन्होंने उसे हर प्रकार से तारकासुर से युद्ध करने के लिए तैयार किया. कार्तिकेय बहुत ही कम समय में एक शक्तिशाली और कुशल योद्धा बन गए. जब कार्तिकेय बड़े हुए, तो उन्हें तारकासुर का वध करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. देवताओं ने उन्हें अपना सेनापति बनाया. कार्तिकेय ने अपनी माँ की दी हुई शिक्षा और अपने पराक्रम से तारकासुर का वध कर दिया. इस प्रकार उन्होंने तीनों लोकों को उसके अत्याचार से मुक्त किया.भगवान कार्तिकेय की माता होने के कारण ही देवी पार्वती के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहा गया. मां स्कंदमाता सदैव अपने भक्तों के ऊपर अपने पुत्र की तरह ही ममता लुटाती हैं. उनकी गोद में सदैव बालक कार्तिकेय विराजमान रहते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि मां अपने भक्तों की रक्षा हर पल करती हैं. यह कथा हमें सिखाती है कि मातृत्व में कितनी शक्ति होती है. मां स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही, वे अपने भक्तों को ज्ञान, बुद्धि और चेतना का आशीर्वाद देती हैं. ऐसा माना जाता है कि मां स्कंदमाता की सच्चे मन से उपासना करने पर भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे भवसागर से पार हो जाते हैं।
